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३. इस व्याकरणकी बहोतसी टीकायें हाथ लगी है. उन टीकाकारोंने भी शाकटायनाचार्यको परम जैनी कहा है. उसका मात्र एक दृष्टांत यह है कि टीकाकार यक्षवर्मन कहते हैं किः
स्वस्तिश्रीसकलज्ञानसाम्राज्यपदमाप्तवान् ॥
महाश्रमणसंघाधिपतिर्यश्शाकटायनः ।। अर्थः-सब ज्ञान प्राप्त करके जिनोने विद्वानोंमें चक्रवर्ती पद प्राप्त किया है, ऐसे महान साधुओंके संघका अधिपति (जैनाचार्य ) शाकटायनाचार्य भये हैं।
४. शाकटायनाचार्य जैनी सिद्धाहये, अब मूल बातपर आके जैनधर्मका प्राचीनपणा मुजको प्रसिद्ध करना चाहीये. ___ प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनी ऋषिके पहिले शाकटायनाचार्य हुवे हैं, यह बाव सिद्ध है, क्योंक
त्रिप्रभृतिषु शाकटायनस्य॥लङः शाकटायनस्यैव ॥व्योर्लेघु
प्रयत्नतरः शाकटायनस्य ॥
इत्यादि सूत्र पाणिनी ऋपिने अपने व्याकरणमें दाखल किया है. परंतु शाकटायन व्याकरणमें पाणिनिका नाम भी नजर नहीं आता, इससे सिद्ध है कि शाकटायनाचार्य पाणिनि ऋषिके पहिले हुए हैं.
पाणिनि ऋषिने शाकटायनके कितनेही सूत्र कुछ भी फेरफार किये विना अपने व्याकरणमें दाखल किये हैं. जैसेकि--
स्वाहौ सौ ॥ यूयवयौ जसि ॥ तुभ्यमह्यौ ङयि ॥ इत्यादि.
पाणिनिव्याकरणके महाभाष्यका कर्ता पतंजली ऋषि भी शाकटायनको याद करते हैं कि
नामचधातुजमाह व्याकरणे शकटस्यचतोकम् । वैयाकरणानां च शाकटायन आह धातुजं नामेति ॥
Patanjali in his Mahabhashya refers also to Sákatayana when he comments on Panini III. 4, 111 and III. 3, 1 ( उणादयो बहुलम् ) In the latter place he remarks:नामचधातुजमाह व्याकरणे शकटस्यचतोकस् । वैयाकरणानच शाकटायन आह धातुजं नामेति ॥
In fact the Unadisutras of Saktayana have found general admission among Grammarians and have been annotated by various commentators such as Ujjvaladatta, Midhaval and others.
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