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द्वितीयस्तम्भः। तूं ही व्यक्त (प्रगट) पुरुषों में उत्तम है. पक्षमें पुरुषोत्तम, कृष्ण, सो तो, सर्वत्र कपटवशसे यथार्थ पुरुषोत्तम नहीं है ॥ २५॥ __ और अज्ञ लोकोनें, जो ब्रह्मा, विष्णु, महादेवके नामोंको कलंकित करे है, और तिनके असभ्यतारूप चरित लिखे हैं, वे देव यथार्थ ब्रह्मा विष्णु, महादेव नहीं माने जाते हैं. क्योंकि उन देवोंका चरित, और स्वरूप, जो परमतवालोंने लिखा है, तिस चरित स्वरूपसेही सिद्ध होता है कि वे यथार्थ ब्रह्मा, विष्णु, महादेव नही थे. तथाचाह भर्तृहरिः-11
शंभुस्वयंभुहरयो हरिणेक्षणानां येनानियंत सततं गृहकुंभदासाः ॥ वाचामगोचरचरित्रपवित्रिताय*
तस्मै नमो भगवते मकरध्वजाय ॥ ४८॥ भावार्थ:-जिस कामदेवने, शंभु (महादेव ), स्वयंभु (ब्रह्मा), और हरि (विष्णु), इन्होंकों, हरिणसमान, ईक्षण (नेत्र) है जिनोंके, ऐसी स्त्रियोंके निरंतर घरके कुंभदास, अर्थात् पानी भरनेवाले करे हैं [ दूसरी परतमें, 'गृहकर्मदासाः' ऐसा पाठ हैं. उसका अर्थ घरके काम करनेवाले दास, अर्थात् नौकर ] वचन अगोचर चरित्र उन्होंकरके पवित्र, ऐसा जो भगवान् मकरध्वज ( कामदेव) तिसकेतांइ नमस्कार हो. तथा भोजराजाकी सभाके मुख्य पंडित धनपालजी कहते हैं. दिगवासा यदि तत्किमस्य धनुषा तच्चेत्कृतं भस्मना भस्माथास्य किमड़ना यदि च सा कामं प्रति द्वेष्टि किम ॥ इत्यन्योन्यविरुद्धचेष्टितमहो पश्यन्निजस्वामिनो शृङ्गी सान्द्रसिरावनपरुषं धत्तेस्थिशेषं वपुः ॥ १ ॥ * प्रत्यंतरे 'वाचामगोचरचरित्रविचित्रिताय' -अर्थः-वाणीयोंके अगोचर अर्थात् वचनोंसे न कहे जावें ऐसे विचित्र, अद्भुत, आश्चर्यकारी, चरित्र है जिसके, ऐसा जो कामदेव भगवान् तिसकेतांइ ननस्कार हो.
+ प्रत्यंतरे 'कुसुमायुधाय' यह कामदेवकाही पर्यायनाम है.
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