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तत्वनिर्णयप्रासाद
भावार्थ:- एकदा अवसरमें भोजराजा शिवालय के द्वारमें अति दुर्बल भृंगगणकी मूर्ति देख के, पंडित श्रीधनपालजीकों पूछते भए कि, "हे पंडित ! यह भृंगीगण अति दुर्बल किस कारणसें है?" तब श्रीपंडित धनपालजीने कहा, "हे राजन् ! यह भृंगीगण, अपने स्वामी शंकरका असमंजस स्वरूप देखके चिंताकरके दुर्बल हो गया है;” सोही दिखाते है. भृंगीगण यह चिंता करता है कि, यदि महादेव, दिगंबर (दिशारूप वस्त्रका धारी) है, तो फेर इनकों धनुष काहेकों रखना चाहिये ? क्योंकि, दिगंबर, निःकिंचन, होके धनुष रखना यह परस्पर विरुद्ध है. ॥ १ ॥ यदि, धनुही रखना था, तो फेर शरीरको अस्म लगानेसें क्या लाभ है ? क्योंकि, धनुषधारी होना यह योद्धे और अहेडी शकारीयोंका काम है, और भस्म शरीरको लगाना यह संतोंका काम है, जिसका किसीकेभी साथ वैर विरोध नही है. यह दूसरा विरोध || २ || अथ जेकर भस्मही शरीर के लगाये संत बने, तो फेर स्त्रीकों संग काहेकों रखनी चाहिये ? ॥ ३ ॥ जेकर स्त्रीही संग रखनी थी, तो फेर काम के ऊपर द्वेष करके उसकों भस्म क्यों करना था ? || ४ || ऐसें परस्पर अपने स्वामीके विरुद्ध लक्षण देखके भृंगीगण दुर्बल हो गया है. || अकलंकदेवोप्याह ॥
ईशः किं छिन्नलिङ्गो यदि विगतभयः शूलपाणिः कथं स्यान्नाथः किं भैक्ष्यचारी यतिरिति च कथं सांगनः सात्मजश्च ॥ आर्द्राजः किंत्वजन्मा सकलविदिति किं वेत्ति नात्मान्तरायं संक्षेपात्सम्यगुक्तं पशुपतिमपशुः कोत्र धीमानुपास्ते ॥ १ ॥
भावार्थ:- जे कर शंकर, आप ईश्वर सर्व वस्तुका कर्त्ता, हर्त्ता है तो, ऋषिके शापसें उसका लिंग किस वास्ते टूट गया ? और ईश्वर होके ऋषिके आगे नग्न होके काहेकों नाचा ? और जेकर ईश्वर भयरहित है तो, शूलपाणि क्यों है ? जे कर त्रिभुवननाथ है तो, क्यों भीख मांगके खाता है ? जे कर यति है तो, किसतरें स्त्रीसहित और पुत्रसहित है ? जे कर आर्द्रा नक्षत्रसें जन्म लिया तो, अजन्मा ( जन्मरहित )
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