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॥ ॐ ॥
प्रसिद्धकर्त्ता की प्रस्तावना.
इस सृष्टिमें प्राणीमात्रको धर्मका शरण है. जैसे सृष्टिम हरेक प्रकारकी क्रियाका बंधन स्वभाव है, वैसे जन्म मरण पर्यंत धर्म प्राणीमात्रका संबंधी है. परंतु धर्मके दर्शन, धर्मकी शाखायें इतनी सारी हो गई है, कि सत्य धर्मसें दूसरे को पिछानना एक कठिन सवाल है. सब अपने २ धर्मकी तारीफ कर रहे हैं. कोई पुनर्जन्मको मानता है, कोई नहीं मानता, कोई पाप पुण्य कबूल करता है, कोई प्रकृतिके शिवाय सब बातोंका निषेध करता है. ऐसें अनेक प्रकारके धर्मको देखके जिज्ञासुको विभ्रमता होती है, कि किसको सच्चा और किसको जूठा माने.
सर्व दर्शनके स्वरूपको विस्तारपूर्वक देखा जाय तो जिसका तत्त्वज्ञान, निष्कलंक शंका रहित और सर्वथा मानने योग्य है, वैसा दर्शन केवल एक जिनदर्शन है. जैनमतके लिये कितनेक ईग्रेजी शिक्षण पाये हुये ( नई चमकवाले ) आदमीने बहोत गोता खाया है. मायः अंग्रेजी ऐतिहासीक और आधुनिक पंडिताभासोंने कई कल्पना करके जैनधर्मको बौद्धकी शाखा बताई है, और एक नवाही धर्म बताया है. और अजितनाथ धर्मनाथ आदि तीर्थकरों के नाम भर्तृहरिके समय के मच्छंदरनाथ, गोरखनाथ जैसें नाथकुलके बतलाकर भर्तृहरिके समयसें जैनधर्म चला भी कह देते हैं. परंतु कितनेक बड़े पाश्चात्य विद्वानोंने परिश्रम करके ऐतिहासिक पुरावे इकट्ठे करके जैनधर्मको बहुत पुराना धर्म सबूत किया है. ( देखो इस ग्रंथका पृष्ठ ५३५ - ५४० ).
डा० मॅक्स मुलर इस जमाने में आर्यविद्याके एक बडे पंडित गिने जाते हैं. उन्होंने कहा है कि सारी दुनियाके पुस्तकों में सात पुस्तक श्रेष्ठ हैं. उसमें दूसरे नंबर में जैनोंका कल्पसूत्र पुस्तक रखा है, और पहेले नवर में बाईबलको रखा है. धर्मांधपणाके वश होकर बाईबलको प्रथम पंक्ति में रखा होगा. धर्मकी परीक्षा, न्यायदृष्टीसें होनी चाहिये; अगर इस दृष्टि भट्ट मॅक्समुलर देखते तो कल्पसूत्रको अवश्य प्रथम पंक्ति में रखते. यह कल्पसूत्र जैनों का एक पुराना ग्रंथ है. पहिले यह रीवाज था कि सूत्र मुखपाठ रखते थे. श्री महावीर स्वामि के पाटधारी श्री भद्रबाहुस्वामी चतुर्दशपूर्वके पाठी वगैरहने नियमोंका अनुक्रम किया. बाद देवट्ठीगणिक्षमाश्रमणने पुस्तक के आकार में लिखे. परंतु जैनधर्मका इतिहास नही जाननेवाले जैनपुस्तकको श्रीभद्रबाहुस्वामी वा देवढीगणिक्षमाश्रमणका बनाया हुवा लिखकर जैनधर्म थोडे काल से चला है, ऐसी विभ्रमता करे उसमें क्या आश्चर्य है ? धर्मके नियम अनादि हैं; सूत्रोंकी रचना तीर्थकरो बखतमें हुई है.
आधुनिक समयके कितनेक पाश्चिमात्य विद्वानोने यह जाहिर किया है कि वेदधर्म प्राचीन याने ई. स. पूर्वी ३००० से लेके ७००० वर्षतकका है. बाद कहते हैं कि बौद्धधर्म ई. स.
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