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________________ स्त्रीको सर्वचारित्र और मोक्ष नहीं इसका उत्तर .... मथुराके लेखोंसे सिद्ध होता है कि दिगंबरीयोंका श्वेतांबरोंपति जो आक्षेप है सो असरल और कालपत है, इत्यादि वर्णन " पणन .... .... .... ६३४ (३४) चतुर्विंश स्तंभ-जैनमतकी कितनीक बातेंपर शंका-उत्तर ६२३-६३९ जैनमतमें लंबी अवगाहना और बडी आयु मानी है तिसका उत्तर ६२३ जैनमतमें पृथिवीको स्थिर मानी है, परंतु जो घूमती मानते हैं, " तिसका उत्तर .... .... जैनमतके माने भरतखंडके प्रमाणकी आशंकाका उत्तर .... ६३१ नवप्रकारके आर्यों का स्वरूप वर्णन (३५) पंचत्रिंश स्तंभ-शंकरस्वागीका जीवनचरित्र, तिसकी समीक्षा इत्यादि वर्णन.... .... .... .... .... ६३९-६५८ (३६) षटूात्रिंश स्तंभ-सप्तअंगीका वर्णन, खंडन, मंडन, सप्तनयादिकोंका वर्णन.... .....६५८-७३९ जैनमतानुसार सप्तभंगीका वर्णन .... .... सकलादेश विकरादेशका स्वरूप वेदव्यासजीका किया सप्तभंगीका वर्णन ..... ६६८ व्यासजी और शंकरके कथनका खंडन और सप्तभंगीका मंडन.... ६७० आत्मा देहव्यापी है परंतु सर्वव्यापी नही, तिसकी सिद्धि, . अद्वैतमतखंडन जैनमतका संक्षेपसे स्वरूपवर्णन, आमाका स्वरूप द्रव्य गुणोंका स्वरूप नयका स्वरूप ( संक्षेपसे) ७१३ ग्रंथकर्ताके ग्रंथ पूर्णताके श्लोक प्रसिद्ध कर्ता (अमरचंद पी०परमार)का निवेदन .... प्रसिद्धकर्ताकी प्रस्तावना उपोद्घात ( मुनि श्री वल्लभ विजयजी) का श्रीमद्विजयानंदमूरि ( आत्मारामजी ) का संपूर्ण जन्मचरित्र .... अनुक्रमणिका (आदिम) .... .... शुद्धिपत्रक (ग्रंथ संपूर्ण हुए वाद). आश्रयदाताओंका ट्रंक जन्मवृत्तांत और तस्वीर (") ........ प्रथमके सहायक ग्राहक और दूसरे ग्राहकों के नाम (") ........ ra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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