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तत्वनिर्णयप्रासादऐसा शाप देदिया उस समय पार्वतीके मुखसे सिंहरूप होकर क्रोध निकलता भया. उस विकरालमुख जटाधारी लंबी पूंछयुक्त कराल डाढोंसमेत मुख फाडे जिव्हा निकाले और पतली कटिवाले सिंहको देखकर उसकी वार्ताको पार्वती जब चितवन करने लगी तब उस पार्वतीके मनकी वार्ताको जानकर ब्रह्माजी आए और बडी स्पष्ट वाणीसे बोले कि हे पुत्रि! तू क्या चाहती है ? मैं कौनसी अलभ्य वस्तु तुझको दूं? तू इस बडे क्लेशवाले तपको समाप्त कर और मेरी आज्ञाको मान ले. यह सुनकर पार्वती बहुत दिनके विचारे हुए मनोरथके वचनको बोली कि, मैंने बडे दुर्लभ व्रत और तपोंसे महादेवजीको प्राप्त किया था, उन्होंने मुझको बहुतवार काली २ ऐसा शब्द कहा, सो मैं चाहती हूं कि, मेरा शरीर कांचनके समान वर्णवाला हो जाय. जिस्से कि, अपने पतिकी गोदीमें सुशोभित रहूं. यह उसके वचनको सुनकर ब्रह्माजी बोले कि, तेरा शरीर ऐसाही हो जायगा, और अपने भर्तीके आधे शरीरके धारण करनेवाली भी हो जायगी. इसके अनंतर नीले कमलके समान पार्वतीकी त्वचा कांचनके वर्णसमान तत्काल हो गई और जो उसकी नीली त्वचा थी वह देवी रात्रिका स्वरूप पीत और कसूमे वस्त्रोंसे युक्त होकर अलग हो गया. तब ब्रह्माजी नीले कमलके सदृश वर्णवाली उस रात्रीसे बोले हे रात्री! तू मेरी आज्ञासे पार्वतीके शरीरके स्पर्श करनेसे कृतकृत्य हो गई. और हे वरानने! इस पार्वतीके क्रोधसे जो सिंह निकला है वही तेरा वाहन होगा और तेरी ध्वजामें भी यही सिंह रहेगा तू विंध्याचलमें चली जा वहां जाकर तू देवताओंके कार्योंको करेगी. और हे देवि! यह पांचालनाम यक्ष तेरे निमित्त अनुचर देता हूं. इस यक्षको हजारों माया आती हैं. ऐसे कही हुई कौशिकी देवी विंध्याचल पर्वतमें जातीभई, और पार्वती भी अपने मनोरथको सिद्ध करके शिवजीके समीप जाती भई. तब उस भीतर जाती हुईको द्वारपर सावधान हो हाथमें बेत ले खडा हो कर वीरभद्र रोकता भया, और व्यभिचारिणीका रूप जानकर उस्से क्रोधपूर्वक बोला कि, यहां तेरा कुछ प्रयोजन नहीं, जो तू नहीं डरती है तो चली जा, यहां पार्वतीजीका रूप धरके महादेवके छलनेके निमित्त एक दैत्य आया था,
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