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तत्त्वनिर्णयप्रासादहै कि, पूर्व पर्यायका नाश और उत्तर पर्यायका उत्पाद होना. जैसें मट्टीरूप द्रव्य, स्थासक, कोश, कुशूल, शिबक, घटादि अवस्थांतरांको प्राप्त हुआ भी, एकांत विनष्ट नही होता है. तिन अवस्थायोंमें भी, मृत्तिकाद्रव्यके अनुगमको आबालगोपालादिकोंको प्रतीत होनेसें.और ऐसे भी न कहना कि, अंधकार, पुद्गलरूप नहीं है; नेत्रोंके विषयकी अन्यथा अनुपपत्ति होनेसें प्रदीपालोकवत् तिसको पौद्गलिकपणा सिद्ध है.
पूर्वपक्षः-जो चाक्षुष है, सो सर्व अपने प्रतिमासमें आलोककी अपेक्षा करता है. परंतु तम ऐसा नहीं है, तो फिर तमको कैसे चाक्षुषपणा होवे ?
उत्तरपक्षः-उलूकादिकोंको तिसके विनाभी अंधकारक प्रतिभास होनेसें. जिन अस्मदादिकोंने अन्यत् चाक्षुष घटादिक आलोक विना उपलंभ नही करीये है, तिनोही अस्मदादिकोंने तिमिरको देखीये है भावोंके विचित्र होनेसें. अन्यथा कैसें पीत श्वेतादि भी, स्वर्ण, मुक्ताफलादि पदार्थ आलोककी अपेक्षासें दीखते हैं, और प्रदीप चंद्रादि प्रकाशांतरकी अपेक्षा रहित दीख पड़ते हैं. इससे सिद्ध हुआ कि, तमः चाक्षुष द्रव्य है. नेत्रोंसें दीखनेवाला द्रव्य है, और रूपवान् होनेसें. स्पर्शवाला भी जाना जाता है, शीतस्पर्शके ज्ञानका जनक होनेसें. और जे अनिवडावयवत्व, अप्रतिघातित्व, अनुद्भूतस्पर्शविशेषवत्त्व, अप्रतीयमान खंडावयविद्वव्यावभागत्व, इत्यादि तमके पौगलिकपणेके निषेध वास्ते परवादियोंने साधन उपन्यास करे हैं, वे सर्व प्रदीप प्रभाके दृष्टांत करकेही प्रतिषेध करने योग्य हैं, तुल्ययोग क्षेम होनेसें. और ऐसे भी न कहना कि, तैजस परमाणु तमपणे कैसें परिणमते हैं ? क्योंकि, पुद्गलोंमें तिस तिस सामग्रीके सहकारी हुआ, विसदृशकार्यका उत्पादकपणा भी देखनेमें आता है. देखा है आर्द्रधनके संयोगसें, भास्वररूप भी अग्निसें, अभास्वररूप धूमकार्यका उत्पाद. इस हेतुसें सिद्ध हुआ कि, नित्यानित्यरूप प्रदीप है. जिस अवसरमें बूझनेसे पहिले देदीप्यमान दीप है, तिस अवसरमें भी नवीन नवीन पर्यायोंके उत्पाद ब्ययका भागी होनेसें और प्रदीप अन्वयके होनेसें नित्यानित्यरूपही दीपक है.
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