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________________ द्वितीयस्तम्भः ऐसें आकाश भी उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक होनेसें नित्यानित्यरूप है, सोही दिखाते हैं. अवगाहक जीव पुद्गलांको अवगाह दानोपग्रहही तिसका लक्षण है. “अवकाशदं आकाशमिति वचनात्” यदा अवगाहक जीव पुद्गल प्रयोगसे वा स्वमावसे एक नभःप्रदेशसें प्रदेशांतरको प्राप्त होते है, तदा तिस नभःकाके तिन अवगाहकोंके साथ एक प्रदेशमें विभाग और उत्तर प्रदेशमें संयोग होता है और संयोग विभाग दोनों परस्पर विरुद्ध धर्म हैं, तिनके भेदसें अवश्य धर्मीका भेद है. तथा चाहुः-"अयमेव हिभेदो भेदहेतुर्वा यद्विरुद्धधर्माध्यासः कारणभेदश्च" यहही भेद वा भेदका हेतु है, जो विरुद्ध धर्माध्यास और कारणका भेद होना. तब तो सो आकाश पूर्वसंयोगविनाशलक्षण परिणामकी आपत्तिसें विनष्ट हुआ, और उत्तरसंयोगोत्पाद परिणाम अनुभावसे उत्पन्न हुआ, और दोनों जगे अनुगत होनेसें, उत्पाद व्यय दोनोंका एकाधिकरण हुआ. तब तो अनुगत होनेसें, उत्पाद व्यय दोनोंका एकाधिकरण हुआ. तब तो “यदप्रच्युतानुत्पन्न स्थिरैकरूपं नित्यम्” ऐसा नित्यका लक्षण कहते हैं. सो खंडित हुआ. क्योंकि, ऐसे लक्षणवाला कोई भी पदार्थ नहीं है. "द्भावाव्ययं नित्यं" यह नित्यका लक्षण सत्य है. उत्पाद विनाश दोनोंके हुए भी, तद्भावात् अन्वयिरूपसें जो नाश न होवे सो नित्य है. ऐसें तिसके अर्थको घटमान होनेसें. जेकर अप्रच्युतादि लक्षण माने, तब तो उत्पाद व्यय दोनोंको निराधारत्वका प्रसंग होवेगा और तिनके योगसे नित्यत्वकी हानि भी नही है. द्रव्यं पर्यायवियुतं, पर्याया द्रव्यवर्जिताः॥ क्व कदा केन किंरूपा, दृष्टा मानेन केन वा ॥१॥ इति वचनात. भाषार्थः-द्रव्य पर्यायांरहित, और पर्यायां द्रव्यसे रहित किसी जगे, किसी कालमें, किसीने, किसी रूपवाले, किसी प्रमाणसें, देखे हैं? अपि तु नही देखे हैं. और ऐसें भी न कहना कि, आकाश द्रव्य नही है. क्योंकि, लौकिकोंमें भी घटाकाश है, पटाकाश है; इस व्यवहारकी प्रसिद्धिसें आकाशको नित्यानित्यत्व सिद्ध होता है. यदा घटाकाश भी घटके दूर हुए, और पटकरके आक्रांत हुए यह पटाकाश है, ऐसा व्यवहार है और यह भी न कहना कि, यह औपचारिक होनेसें प्रमाण नही. क्योंक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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