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________________ द्वितीयस्तम्भः । २९ पुस्तक प्राचीन हुए वा नवीन हुए तो इनसें कुछभी सत्य मोक्षमार्गकी सिद्धि नही होती है. यह किंचित्मात्र ग्रंथसमीक्षाविषयक लिखा, इसके आगे देवविषयक स्वरूप लिखा जायगा, जोकि ध्यान देकर वाचनेके योग्य है. इति श्रीमद्विजयानन्दसूरिकृते तत्वनिर्णयप्रासादे ग्रंथसमीक्षाविषये प्रथमः स्तंभः || १ || अथ द्वितीयस्तम्भप्रारम्भः अब इस द्वितीय स्तंभ में थोडासा देवविषयक लिखते हैं. क्योंकि, कोइ लोक कहते हैं कि, जैनमतवाले ब्रह्मा, महादेव और विष्णुकों नही मानते हैं. इस वास्ते जैनमत प्रमाणिक नही है; परंतु यह कहना उन मित्र लोकोंको अच्छा नही है. क्योंकि, असली ब्रह्मा, महादेव और विष्णु जो है, तिनकों तो जैनमतवालेही मानते हैं. और कल्पित जो ब्रह्मा, महादेव, विष्णु है तिनकों अन्य मतवाले मानते हैं. पूर्वपक्ष:- जैनमतवाले जैसें ब्रह्मा, महादेव और विष्णुकों मानते हैं, तिनका स्वरूप लिखो, जिससे हरेक वाचकवर्गकों मालुम हो जावे कि, जैनमतवाले ऐसे ब्रह्मा, महादेव और विष्णुकों मानते हैं. उत्तरपक्षः - हे प्रियवर ! मेरी इतनी बुद्धि वा शक्ति नही है, जो मैं यथार्थ ब्रह्मा, महादेव और विष्णुका पूरेपूरा स्वरूप लिख सकूं. तोभी पूर्वाचार्योंके प्रसादसे किंचित्मात्र लिखता हूं; जिसको ध्यान देके पढनेसें मालूम होगा कि, ब्रह्मा, महादेव और विष्णु ऐसे होते हैं. प्रशांतं दर्शनं यस्य सर्वभूताभयप्रदं ॥ मांगल्यं च प्रशस्तं च शिवस्तेन विभाव्यते ॥ १ ॥ भाषार्थ:- जिस महादेवका अथवा तिसकी प्रतिमाका दर्शन प्रशांत है, दर्शन करनेवालेके मनकों प्रशांत करनेका हेतु होनेसें प्रशांत दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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