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तत्वनिर्णयप्रासाद
१ ऋ० – अग्निकी प्रेरणासें शुनःशेपने विश्वेदेवताकी स्तुति करी. ८ ऋ० - उखल मूसलकी स्तुति है, क्योंकि, उखल मूसल सोमको कूटके इंद्रके पीने योग्य रस काढते हैं.
१ ऋ०
० - ऋत्विग्विशेष हे हरिश्चंद्र देवता ! पक्षे हे हरिश्चंद्र ! तूं सोमको गाडीऊपर लाद दे.
२२ ऋ० - विश्वेदेवोंकी प्रेरणासें शुनःशेपने इंद्रकी स्तुति करी. हे इंद्र ! हमकों गालीयां देनेवाले हमारे शत्रुयांकों तूं मार इत्यादि. १ ऋ० - इंद्रने तुष्टमान होके शुनःशेपकों हिरण्यरथ दिया. ३ ऋ० - इंद्रकी प्रेरणासें शुनःशेपने इंद्रके घोडोंकी स्तुति करी. ३ ऋ० - इंद्रके घोडोंकी प्रेरणासें शुनःशेपने उषःकालाभिमानिनी देवताकी स्तुति करी.
॥ ऋ० अ० १ मं० १ अ० ७ ॥
१८ ऋ० -अग्निकी स्तुति, अग्निके कर्त्तव्य, हे अग्ने ! नहुषनामा राजाका तूने सेनापतिपणा करा; किसी लडकी छोकरीका तूं उपदेशक था, - इत्यादि.
१५ ऋ० - इंद्र के पराक्रमोंका वर्णन, मेघकों मारा, जलकों भूमिमें गेरा, पर्वतांकों तोडके नदीओंकों ले आया, अनेक असुरांकों मारे, वृत्रनामा असुरने मेघकों रोक रक्खा था तिसकों इंद्रने मारा - इत्यादि.
१५ ऋ० - पणिनामा असुर देवताओकी गौआंकों हरके ले गया, देवताओंने परस्पर सलाह करके इंद्रके पास पुकार करा; इंद्र गौआंकों ले आया, वृत्रके अनुचरोंकों मारा, मेघ वर्षाया, दैत्य मारे, कुत्सनामा ऋषिकी रक्षा करी, दशद्यु ऋषिकी रक्षा करी, शत्रुओंके भयसें जलमें मन हुआ, इंद्रके अनुग्रहसें बहार निकला, और उसकी रक्षा करी - इत्यादि.
१२ ऋ० -अश्विनीकुमारोंका सामर्थ्य, उनोंकी प्रार्थना, रथके गर्दभोंका वर्णन, और यज्ञमें आमंत्रणादि.
११ ऋ० - सूर्यका वर्णन, सूर्य बहुत देशोंसें आता है, सूर्यके रथका वर्णन, सूर्यके घोडोंका वर्णन, सोश्यावीनामा घोडा सूर्यका रथ बहता है, लोक स्वर्गोपलक्षित तीन है, दो लोक सूर्यके समीप होनेसें सूर्य उनकों
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