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प्रथमस्तम्भः । ६०-इंद्राग्नि आदि देवताका वर्णन.
१६ ऋ०-अनेक नामके देव देवीका वर्णन, और यज्ञके वास्ते आमंत्रण. __१०-विष्णु परमेश्वर त्रिविक्रमावतारमें पृथिवीकी रक्षा करता भया, तिसका वर्णन. -१०-विष्णु त्रिविक्रमावतारधारी इस जगत्कों उद्दिश्य विशेष करके पादक्रमण करता भया, इत्यादि
१ ऋ०-कोइ भी जिसको हनने सामर्थ्य नहीं, ऐसा विष्णु जगत्का रक्षक है. पृथिव्यादि स्थानों में तीन पादक्रमण करता हुआ. धर्म जो अग्निहोत्रादि तिसका पोषण करता हुआ. ___१ ऋ०-हे ऋत्विगादयः ! तुम विष्णुके कर्म पालनादि देखो, इत्यादि विष्णुवर्णन.
१ ऋ०-पंडित विष्णुसंबंधि स्वर्गस्थान उत्कृष्ट पदकों देखते हैं, जैसें चक्षु आकाशमें देखते हैं. १ ऋ०-प्रमादरहित जे पंडित हैं, वे विष्णुके पदकों दीपाते हैं. ३ ऋ०-यज्ञके वास्ते ऐंद्रवायुदेवताका आमंत्रणादिवर्णन. ३ ऋ०-मित्रवरुणदेवताका आमंत्रणादिवर्णन. ६ ऋ०-मरुतदेवताको विनती आमंत्रणादि. ३ ऋ०-पूषन्देवताका वर्णन. ८०-आप् (पाणी)का वर्णन, आमंत्रण और तिससे विनती आदि. १ ऋ०-अग्निका वर्णन.
॥ऋ० अ० १ मं० १ अ० ६॥ .१५ ३०-यूपकेसाथ यज्ञके वास्ते बंधा हुआ शुनःशेपनामा जन अपनी जिंदगीके वास्ते अनेक देवताओंको विनती करता है, और उन्होंकी स्तुति करता है, विशेषकरके वरुणदेवताकी स्तुति जीवन वास्ते करता है।
२१ १०-शुनःशेपने वरुणकीही स्तुति करी तिसका वर्णन. २२ १०-वरुणके कहनेसें शुन शेपने अग्निकी स्तुति करी.
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