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________________ १८ तस्वनिर्णयप्रासाद___ ९ ऋ०-में अनुष्ठाता समीचीनराज्यसंयुक्त, सम्यग् दीप्यमान वा ऐसें इंद्रवरुणोंसंबंधी रक्षाकी प्रार्थना करता हूं. हे इंद्रवरुणौ ! तुम अनुष्ठान करनेवालेके रक्षक हो. इत्यादि-हे इंद्रवरुणौ! यदा यदा हम धन चाहते हैं, तदा तदा तुम देते हो. हे इंद्रवरुणौ ! तथाविध हविः ग्रहण करनेवाले तुह्मारे दोनोंके प्रसादसें हम अन्न देनेवाले पुरुषोंमें मुख्य होते हैं. यह इंद्र धन देनेवालोंमेंसें प्रभूतधन देता है, वरुण स्तुति करने योग्य है, इंद्र वरुणके रक्षक होनेसे हम धनकों प्राप्त होते हैं, निधि भी करते हैं, हे इंद्रवरुणौ ! हम तुमकों आहुति देते हैं, मणि आदि विचित्र धनके वास्ते, और शत्रुयोंमें हमकों जययुक्त करो. हे इंद्रवरुणौ! तुम हमारी बुद्धियांमें सुख दो, हे इंद्रवरुणौ ! तुम श्रेष्ठ स्तुतिको प्राप्त हो. ॥ऋ० अ० १ मं० १ अ०५॥ १०-हे ब्रह्मणस्पते देव! मुजे अनुष्ठानकर्ताकों देवोंके विषे प्रकाशवाला कर, कक्षीवान् नामक ऋषिकी तरें. १०-धनवान् , रोगोंकों हननेवाला, धनप्राप्तिवाला, पुष्टिकी वृद्धि करनेवाला, शीघ्र फलका देनेवाला, ऐसा ब्रह्मणस्पति देव, हमकों अनुग्रह करो. १ ऋ०-हे ब्रह्मणस्पते ! शत्रुकों दूर कर, हमकों पाल. १०-यह इंद्रदेव यक्ष्यमाण मनुष्यकों वर्द्धमान करता है, तथा ब्रह्मणस्पति, और सोम करते हैं सो यजमान विनाशकों प्राप्त नहीं होता है. १०-हे ब्रह्मणस्पते ! तूं अनुष्ठान करनेवाले मनुष्यकी पापसें रक्षा कर, तथा सोम, इंद्र, दक्षिण, यह सर्व देव रक्षा करो. ___ सदसस्पति नाम देवता, इंद्रका प्यारा, धनका दाता, इत्यादि चतुर्दश (१४) ऋचामें अनेक प्रकारके देवताओंका सामर्थ्य और आमंत्रणादि वर्णन है. ८०-मनुष्य तप करके देवते हुए, तिनकों ऋभु कहते हैं. तिनोंको प्रीति उत्पन्न करने वास्ते ऋत्विजोंने अपने मुखकरके स्तोत्र उत्पन्न करा, तिस स्तोत्रका वर्णन. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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