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प्रथमस्तम्भ
१७ ३ ऋ०-अग्निकों आमंत्रण, अग्निकी स्तुति, आग्निके रथके घोडे पुष्टशरीरवाले हैं, अनिसें प्रार्थना, यज्ञ करनेवालोंकों पत्नीयुक्त कर.
१ ३०-हे अग्ने! तेरी जिव्हा करके देवते सोमका भाग पीवो. १०-देवताको वर्गलोकसें यज्ञमें बुलाना..
३ ऋ०-हे अग्ने! तूं देवताओं सहित सोमसंबंधी मधुर भाग पी. हे अग्ने! तूं हमारे यज्ञकों निष्पादन कर. हे देवाग्ने! तूं अपने रोहित नामा घोडेकों जोडके इस यज्ञमें देवताओंकों बुलाव.
१२ ऋ०-हे इंद्र! ऋतुदेवसहित सोम पी. हे मरुत ! तूं सोम पी. ऋतुके साथ हमारे यज्ञकों सोध. हे अग्नादेवते! तूं रत्नोंका दाता है, इस वास्ते सोम पी. हे अग्ने! तूं देवताकों बुलवाव. हे इंद्र! तूं ऋतुसहित धनभूतपात्रसें सोम पी. हे मित्रनामक और वरुणनामक देव! तुम ऋतुके साथ हमारे यज्ञमें व्याप्त हुओ. अग्निदेवकी धनके अर्थी ऋत्विज स्तुति करते हैं. द्रविणोदा देवता हमको धन देवो. द्रविणोदा देव ऋतुयांके साथ नेष्टसंबंधि पात्रसे सोम पीनेकी इच्छा करता है, इस वास्ते हे ऋत्विज ! तुम होमके स्थानपर जाकर होम करो. हे द्रविणोदा देव! ऋतुयां सहित तेरेकों हम पूजते हैं. तूं हमकों धन दे. हे अश्विनौ देवते! तुम ऋतु सहित यज्ञके निर्वाहक हो. हे अग्निदेव! तूं गृहपतिके रूप करके ऋतु सहित यज्ञका निर्वाहक है.
९ ऋ०-हे इंद्र! सोम पीनेके वास्ते अपने घोडोंकों बुलाव. वेदीके पास इंद्रकों आहुति-हे इंद्र! तूं घोडोंसहित आव, हम आहुति देते हैं। हे इंद्र ! तूं गौर मृगकी तरें तृषित (प्यासा) हुवा इस सोमकों पी. हे इंद्र! तिस तिस पात्रगत तिन तिन सोमोंकों बलके वास्ते तूं पी. हे इंद्र! यह जो श्रेष्ठ स्तोत्र हम करते हैं, सो तेरे हृदयकों सुखदायि होवे; स्तुति अनंतर तूं सोम पी. इंद्रकों यज्ञमें आमंत्रण हे शतक्रतो! तूं हमकों वांछित फल, गौआं, घोडे सहित पूरण कर. हम भी ध्यान करके तेरी स्तुति करते हैं.
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