SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमस्तम्भः। २१ प्रकाशता है, तीसरा यमलोक है, जिसमें प्रेतपुरुष आकाशमार्ग सें जाते हैं. सूर्यके किरण तीन लोककों प्रकाश करते हैं, ऐसे किरणोंवाला सूर्य रात्रि में कहां है? यह रहस्य कोइ नहीं जानता है. सूर्य आठों दिशा और गंगादि सात नदीयों वा सात समुद्रांकों प्रकाशता है, सो यहां यज्ञमें आवो, सोनेके हाथोंवाला सूर्य स्वर्ग और पृथ्वीके बीच में चलता है. सूर्य की स्तुति. हे सूर्य ! तेरे चलनेका मार्ग निर्मल है. आज तूं आ कर हमारी रक्षा कर - इत्यादि. ॥ ऋ० अ० १ ० १ अ० ८ ॥ २० ऋ०-अग्निकी स्तुति, अग्निकों आमंत्रण, हे अग्ने ! तूं हमारे शत्रुओंकों मार, भस्म कर, राक्षसोंकों भस्म कर - इत्यादि. ४० ऋ० - काण्व ऋत्विक्का वर्णन, मरुत् देवताका सामर्थ्यवर्णन, कावकों यज्ञमें आमंत्रण, पुनः मरुत् देवताका सामर्थ्यवर्णन, उनकों विनती और आमंत्रण - ४९ प्रकारके मरुत् देवताओंका सामर्थ्य वर्णन, यज्ञमें आमंत्रण और उनोंसें याचना करनी - इत्यादि. ८ ऋ० - ब्रह्मणस्पति देवताका सामर्थ्यवर्णन, उनकों आमंत्रण और उनसे अनेक वस्तुओंकी याचना - इत्यादि. ९ ऋ - वरुण, मित्र और अर्यमा, इन तीनों देवताओंका कथन, और उनोंसें प्रार्थना, धन देवो, यजमानकी रक्षा करो, शत्रुओंकों मारोइत्यादि. १० ऋ० - पूषन् देवताका वर्णन, तिसका सामर्थ्य, तिसकों आमंत्रण और तिससे धनादिकी याचना - इत्यादि. ५ ऋ० – रुद्रनामक देवका वर्णन स्तोत्रद्वारा - १ ऋ० - हमारे घोडे, मेष, मेषी, पुरुष, स्त्री, गौआदिके तांइ देव सुख करता है. ३ ऋ०- - हे सोम ! हमकों धन दे. इत्यादि वर्णन. ॥ ऋ० अ० १ ० १ अ० ९ ॥ २४ ऋ० -अनिकी स्तुति, अग्निका विचित्र प्रकारके विशेषणां सं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy