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________________ तत्वनिर्णयप्रासादमिरभास्कर ग्रंथसे देख लेना. जुगुप्सनीय, उपहास्यजनक बातों लिखनी हम अछा नहीं समझते हैं. और स्तुति प्रार्थना विषयक जो लेख है, नीचे लिखते हैं। ॥ऋग्वेद । मंडल 3, अष्टक १, अनुवाक १.॥ प्रथम नवऋचामें-अग्नि, वा, अग्निदेवताकी स्तुति है. तदनु तीन ऋचाचें-वायु, वा, वायु देवताका वर्णन है. और आमंत्रण स्तुति है. तदनु तीन ऋचामें-ऐंद्रवायु देवताका आमंत्रण है. तदनु तीन ऋचामें-ऐंद्रवायु देवताका आमंत्रण है. तदनु तीन ऋचामें-मैत्रावरुण दो देवताका सामर्थ्य कथन है. त. ती०-अश्विनौ देव वैद्योंके गुण कथन, और उनोंका आमंत्रण है. त० ती०-इंद्रकों आमंत्रण, और तिसके हरित् घोडेका वर्णन है. त० ती०-विश्वेदेवास इस नामके देवताका सामर्थ्य, और आमंत्रण है. त० दो०-सरस्वती देवीका सामर्थ्य कथन है. त. एक०-सरस्वती नदीका वर्णन, और उपकार कथन है. ॥ऋ० अ० १ मं० १ अ० २॥ प्रथम तीन ऋचामें-इंद्रकों सोम रस पीनेके वास्ते आमंत्रण ; सोमरस पीनेसें इंद्र हमकों गौआं देवेगा. तदनु एक ऋचामें-यज्ञ करानेवाला यजमानकों कहता है, तूं जा कर १ मणिलाल नभुभाइ अपने बनाए सिद्धांतसार पुस्तकमें लिखते हैं कि-यज्ञसंबंधी एकवात बहुत मुख्य रीतिसें विचारने जैसी है. बहुत बड़े यज्ञोंमें एक दोसें सौ सौ तक पशु मारनेका संप्रदाय नजरे आता है. बकरे घोडे इत्यादि पशु मात्रका बलि दिया जाता था इतनाही नही परंतु अपनेकों आश्चर्य लगता है कि मनुष्योंका भी भोग देनेमे आता था ! पुरुषमेध इस नामका यज्ञही वेदमें स्पष्ट कहा हुआ है; और शुन : शेषादि वृत्तांत भी इसी बातकी साक्षी देता है. और इस रक्तस्त्रावमें आनंद मानने उपरांत, सोम पानसें, और आखीरके वखतमें तो सुरा ( मदिरा ) पानसे भी, आर्यलोक मत्त होते मालुम पडते हैं. २ जिसको देखनेकी इछा होवे ऋगवेद अष्टक आठ (८) में और यजुर्वेद अध्याय तेवीस (२३) में देख लेवे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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