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________________ प्रथमस्तम्भ : १५ इंद्रकों पूछ कि यज्ञ करानेवालेने इंद्रकी स्तुति ठीक करी है, कि नही ? यह सुन कर इंद्र तेरेकों श्रेष्ठ धन पुत्रादि सर्व औरसें देवेगा. तदनु एक ऋचामें- हमारे ऋत्विज इंद्रकों कहे, हमारे निंदक इस देशमें, तथा अन्य देशों में भी न रहे. त० एक० - हे इंद्र ! तेरे अनुग्रहसें हमारे शत्रु भी मित्रभूत हुए बोलते हैं. त० तीन० - इंद्रकों सोमवल्लीका रस देवो, जिसकों पीके इंद्र वृत्रनामारि असुर शत्रुयांकों हननेवाला होवे, और संग्राममें, हे इंद्र ! तूं अपने भक्तकी रक्षा करनेवाला हो, हे इंद्र ! तेरेकों अन्नवाला करते हैं. तदन एक ऋचामें- इंद्र धनकी भूमिका रक्षक है, इस वास्ते हे ऋत्विजो ! तुम इंद्रकी स्तुति करो. त० एक० - हे ऋत्विजो ! शीघ्र इस कर्ममें आवो ! आवो ! आ कर बैठो; बैठ कर इंद्रकी स्तुति करो. त० एक० - हे ऋत्विजो ! तुम सर्व एकठे होकर इंद्रकों गावो. त० एक० - पूर्व मंत्रोक्त गुणवाला इंद्र हमकों पूर्व अप्राप्त पुरुषार्थकों प्राप्त करो ! और, सोइ इंद्र धन, स्त्री, अथवा बहुत प्रकारकी बुद्धियांकों सिद्ध करो. त० नव०- - इंद्रके रथ घोडोंका कथन, और इंद्रकी प्रार्थना. त० एक० - इंद्रही अग्नि, वायु, सूर्य, नक्षत्रके रूपसें रहा हूआ है. त० एक० - इंद्रके घोडे रथका वर्णन. त० एक० - सूर्यका वर्णन. त० पांच० - मरुतका वर्णन, पणि नामक असुरोंने स्वर्गसें गौआं चुरायके अंधकारमें छिपा रखी. पीछे इंद्र मरुतोंके साथ तिनकों जीतता हूआ, इंद्र मरुतकी स्तुति, और आमंत्रण. त० एक० - इंद्र आकाशादिकोंसें ल्याके हमकों धन देवो. त० नव० - इंद्रकी अनेक रूपसें स्तुति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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