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सम्यक्त्वशल्योद्धार
तथा जेठे ने भद्रिक जीवों को भुलाने वास्ते लिखा है, कि " श्री समवायांगसूत्र में वर्तमान चौवीस जिन के नाम कहे हैं, वहां वंदे शब्द कहा है । क्योंकि वे भाव निक्षेपे वंदनीय हैं, और अनागत चौवीस जिन के नाम कहे हैं, वहां वंदे शब्द कहा नहीं है । | क्योंकि वे द्रव्य निक्षेपे हैं । इस वास्ते वंदनीय नहीं है" यह लिखना बिलकुल झूठा है 1 क्योंकि श्रीसमवायांगसूत्र में वर्तमान तथा अनागत दोनों ही चौबीस जिन के नामों मे वंदे शब्द नहीं है । तथा जेठे मूढ़ने इतना भी विचार नहीं किया है कि कदापि वर्तमान | चौबीस जिन के नाम में वंदे शब्द हो, तो भी उस से तो नाम निक्षेपे को वंदना है; परंतु भाव निक्षेपा तो वहां है ही कहां ?
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तथा गांगेय अनगार की बाबत जेठेने जो लिखा है, सो भी उस की नय निक्षेपे | की अज्ञता का सूचक है, क्योंकि गांगेय अनगार भाव अरिहंत की शंका होने से | पहिले वंदना नहीं की और परीक्षा कर के शंका दूर हो गई तब वंदना की । इस से तुम्हारा पंथ क्या सिद्ध होता है ? क्योंकि वहां तो द्रव्य निक्षेपे को वंदना करने का कुछ कारण ही नहीं है ।
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तथा जेठे ने लिखा है, कि श्रीतीर्थंकर देव गृहवास में वंदनीय नहीं हैं" यह | लिखना भी जेठे का जैनशास्त्रों की अनभिज्ञता का सूचक है । क्योंकि प्रभु को गर्भवास | से ले के इंद्रने वारंवार नमस्कार किया । ऐसा अधिकारसूत्रों में ठिकाने ठिकाने आता है, और शास्त्रकारों ने देवताओं को महाविवेकी गिना है । श्रीदशवैकालिकसूत्र की प्रथम गाथा में ही लिखा है कि
इस गाथा में ऐसे कहा है कि जिस का मन सदा धर्म में वर्तता है, उस को | देवता भी नमस्कार करते हैं । अपि शब्द कर के यह सूचना की है, कि मनुष्य करे | इस में तो कहना ही क्या ? इस लेख के अनुसार मनुष्य से अधिक विवेकी देवता ठहरते हैं । इस वास्ते देवताओं के स्वामी इंद्र ने गर्भवास से ले के नमस्कार किया है, तो मनुष्य को करने योग्य है इस में क्या आश्चर्य ?
धम्मो मंगल मुक्कि अहिंसा संजमो तवो । देवावि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो || १ ||
तथा जेठा लिखता है कि " जमाली को तथा गोशाला आदि को जिन मार्ग के प्रत्यनीक जान के उन के शिष्य उन को छोड के भगवंत के पास आए, परंतु किसी ने भी उन | को द्रव्यगुरु जानके नमस्कार नहीं किया । इस वास्ते द्रव्य निक्षेपा वंदनीय नहीं है" उत्तर -
वाह रे अकल के दुश्मन ! तुम को इतना भी ज्ञान नहीं है, कि जिसका भाव
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प्रद्युम्नकुमारचरित्र में नारदजी ने श्रीनेमनाथ भगवान को गृहवास में नमस्कार करने का अधिकार आता है, परंतु गृहवास में तीर्थंकर को कोई भी नमस्कार नहीं करता है यह पाठ किस ढूंढक पुराण का है ?
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