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________________ ४९ | शास्त्रकार ने द्रव्य निक्षेपा वंदनीय कहा है इसमें कोई शक नहीं है । जरा अंतर्ध्यान हो कर विचार करो और कुमतजाल को तजो । १२. चारों निक्षेपसे अरिहंत वंदनीय है इस बाबत : बारहवें प्रश्न की आदि में मूढमति जेठमल ने अरिहंत आचार्य और धर्म के ऊपर | चार निक्षेपे उतारे हैं सो बिलकुल झूठे हैं, इस तरह शास्त्रों में किसी जगह भी नहीं उतारे हैं । और नाम अरिहंत की बाबत " ऋषभोशांतो नेमोवीरो" इत्यादि नाम लिख कर जेठे | ने श्रीवीतराग भगवंत की महा अवज्ञा की है । सो उस की महा मूढ़ता की निशानी है और इसी वास्ते हमने उस को मूढ़मति का उपनाम दिया है । जेठमल ने लिखा है, कि " केवल भाव निक्षेपा ही वंदनीय है, अन्य तीन निक्षेप वंदनीय नहीं हैं" परंतु यह उस का लिखना सिद्धांतों से विपरीत है, क्योंकि सिद्धांतों में चारों निक्षेप वंदनीय कहा है । जेठे निन्हवने लिखा है कि " तीर्थंकरो के जो नाम हैं सो नाम संज्ञा हैं, नाम निक्षेपा नहीं, नाम निक्षेपा तो तीर्थंकरों के नाम जिस अन्य वस्तु में हो सो है ।" इस | लेख से यही निश्चय होता है कि जेठे अज्ञानी को जैनशास्त्रो का किंचित मात्र भी बोध नहीं था । क्योंकि श्रीअनुयोगद्धारसूत्र में कहा है, यत जत्थ य जं जाणेज्जा, निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं । - जत्थविय न जाणेज्जा, चउक्कयं निक्खिवे तत्थ ||९|| अर्थ - जहां जिस वस्तु में जितने निक्षेप जाने वहां उस वस्तु में उतने निक्षेप करे, और | जिस वस्तु में अधिक निक्षेप नहीं जान सके तो उस वस्तु में चार निक्षेप तो अवश्य करे । अब विचारना चाहिये कि शास्त्रकार ने तो वस्तु में नाम निक्षेपा कहा है और जेठा मूढमति लिखता है कि जो वस्तु का नाम है सो नाम निक्षेपा नहीं, नाम संज्ञा है । | तो इन मंदमति को इतनी भी समझ नहीं थी, कि नाम संज्ञा में और नाम निक्षेपे में कुछ फरक नहीं है ? श्रीठाणांगसूत्र के चौथे ठाणे में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव यह चार प्रकार की | सत्यभाषा कही है जो प्रथम लिख आए है । श्री ठाणांगसूत्र के दश में ठाणे में दश प्रकार का सत्य कहा हैं तथा श्रीपन्नवणाजीसूत्र के भाषा पद में भी दश प्रकार के सत्य कहे हैं । उनमें स्थापना सच्च कहा है सो पाठ यह है । जणवय-सम्मय-ठवणा, - नामे-रूवे दसविहे सच्चे पण्णत्ते तंजहा 1 | पडुच्चसच्चेय । ववहारभावजोए, दसमे उवम्मसच्चेय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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