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अनुत्तर विमान के नाम गुण निष्पन्न ही हैं । और उनका द्वीप समुद्र के नामों | साथ संबंध होने का कोई कारण नहीं है ।
श्रीअनुयोगद्वारसूत्र में कहे गुणनिष्पन्न नाम के भेद में सिद्धायतन नाम का समावेश होता है ।
भरतादि विजयों में मागध १ वरदाम २ और प्रभास ३ यह तीर्थ कहे हैं, सो तो लौकिक तीर्थ है । इनको मानने का सम्यग् दृष्टि को क्या कारण है ? अरे मूढ ढूंढियो ! कुछ तो विचार करो कि जैसे अन्यदर्शनियों में आचार्य, उपाध्याय, साधु, ब्रह्मचारी आदि कहते हैं; और शास्त्रकार भी उनको साधु कह कर बुलाता है, तो क्या इस से वे जैन दर्शन के साधु कहावेंगे ? और वे वंदना करने योग्य होंगे ? नहीं, वैसे ही मागधादि तीर्थ जान लेने ।
श्रीऋषभानन, १. चंद्रानन, २. वारिषेण, और ३. वर्द्धमान ४. यह चार ही नाम | शाश्वती जिन प्रतिमा के हैं, क्योंकि प्रत्येक चौवीसी में पंद्रह क्षेत्रों में मिला के यह चार नाम जरूर ही पाये जाते हैं, इस वास्ते इस बाबत का जेठे का कथन जूठा है ।
तथा जेठा लिखता है कि "द्रौपदी के मंदिर में प्रतिमा थी तो उसको सिद्धायतन न कहा और जिन घर क्यों कहा " । उत्तर - अरे मूढ ! जिनगृह तो अरिहंत आश्रित नाम है, और सिद्धायतन सिद्ध आश्रित नाम है; इसमें बाधा क्या है ?
फिर जेठा लिखता है "धर्मास्ति-अधर्मास्ति वगैरह अनादि सिद्ध के नाम कह कर उनको सिद्ध ठहरा के तुम वंदना क्यों नहीं करते हो" उत्तर - सिद्धायतन शब्द के अर्थ | के साथ इनका कुछ भी संबंध नहीं है । तो उनको वंदना क्यों कर होगी ? कदापि ना | होगी; परंतु तुम ढूंढिये 'नमो सिद्धाणं' कहते हो तबतो तुम धर्मास्ति - अधर्मास्ति को ही | नमस्कार करते होगे ! ऐसा तुम्हारे मत मुताबिक सिद्ध होता है ।
फिर जेठे ने लिखा है कि "अनंते काल की स्थिति है, और स्वयं सिद्ध, विना करे हुए, इस वास्ते सिद्धायतन कहिये" उत्तर अनादिकाल की स्थितिवाली और स्वयंसिद्ध ऐसी तो अनेक वस्तु यथा विमान, नरकावास, पर्वत, द्वीप, समुद्र, क्षेत्र, इनको तो किसी जगह भी सिद्धायतन नहीं कहा है; इस वास्ते जेठे का लिखा अर्थ सर्वथा ही झूठा है । यदि ढूंढिये हृदय चक्षु को खोल के देखेंगे, तो मालूम हो जावेगा, कि केवल शाश्वती जिन प्रतिमा के भुवन को ही शास्त्रों में सिद्धायतन कहा हुआ है, और इसी वास्ते सिद्धायतन शब्द का जो अर्थ टीकाकारों ने किया है, सो सत्य है; और जेठे का किया अर्थ सत्य नहीं है ।
और जेठे ने लिखा है कि "वैताढ्य पर्वत के ऊपर के नव कूटों में से एक को ही सिद्धायतन कहा है, शेष आठ को नहीं; उसका कारण यह है कि शेष कूट देवदेवी १ शाखती अशाखती जिन प्रतिमा आश्रित नामांतर मेद है परंतु प्रयोजन एक ही है ।
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