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गृह-प्रवेशं सुविनीत-वेषः, सौम्यायने वासर - पूर्व-भागे । कुर्याद् विधायालय देवताच, कल्याणधी भूतबलिक्रियां च ॥१॥
इस पाठ में भी बलि शब्द से नैवेद्य पूजा होती है ।
उपर लिखे दृष्टान्तों से 'कयबलिकम्मा' (कृत बलि कर्म्मा) शब्द का अर्थ देवपूजा | सिद्ध होता है । परन्तु मूर्ख शिरोमणि जेठे ने कय बलिकम्मा अर्थात् 'पाणी की कुरलियां करी ऐसा अर्थ किया है सो महा मिथ्या है । तथा कय को उय मंगल अर्थात् "कौतुकमंगलिक पाणी की अंजलि भर के कुरलियां करी" ऐसा अर्थ किया है । | सो भी महा मिथ्या है । किसी भी कोष में ऐसा अर्थ किया नहीं है और न कोई पंडित | ऐसा अर्थ करता भी है । परन्तु महा मिथ्यादृष्टि ढूंढिये व्याकरण, कोष, काव्य, | अलंकार, न्याय, आदि के ज्ञान बिना अर्थ का अनर्थ कर के उत्सूत्र प्ररूप के अनन्त संसारी होते हैं ।
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तथा नाममाला में कौए को बलिभूक् कहा है, तो क्या ढूंढियों के कहने मुताबिक कौए पानी की कुरलियां खाते हैं ? या पीठी खाते हैं ? नहीं, ऐसे नहीं है, किन्तु वे | देव के आगे धरी हुई वस्तु के खाने वाले है । इस वास्ते इसका नाम बलिभुक् है । | और इस से भी बलिकम्मा शब्द का अर्थ देवपूजा सिद्ध होता है ।
तथा जेठे ने द्रौपदी के अधिकार में लिखा है कि "स्नान कर के पीछे बटणा मला" देखो कितनी मूर्खता ! स्नान कर के वटणा मलना, यह तो उचित ही नहीं, ऐसी | कल्पना तो अज्ञ बालक भी नहीं कर सकता है; परन्तु जैसे कोई आदमी एक बार झूठ बोलता है, उसको उस झूठ के लोपने वास्ते बारंबार झूठ बोलना पडता है । वैसे | केवल एक अर्थ के फिराने वास्ते जैसे मन में आया वैसे लिखते हुए जेठे ने संसार बंधनका जरा सा भी डर नहीं रखा ।
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तथा जेठे ने लिखा है कि "सम्यग्दृष्टि अन्य देव को पूजते हैं" सो मिथ्या है, क्योंकि | अन्य देव को श्रावक पूजते नहीं है, मिथ्यादृष्टि पूजते हैं । और जिस श्रावक ने गुरुमहाराज के मुखसे षट् आगार सम्यक्त्व उच्चारण करा हो, सो शासन देवता प्रमुख सम्यग्दष्टि की भक्ति करता है, वह साधर्मी के संबंध कर के करता है; और वह अन्य देव नहीं कहाता है, और जो कोई सम्यग्दृष्टि किसी अन्य देव को मानेगा तो वह या तो | सम्यग्दृष्टि ही देवता होगा या कोई उपद्रव करने वाला देवता होगा । और उस उपद्रव | करने वाले देवता निमित्त श्रावककों देवाभिओगेणं यह आगार है । परंतु तुंगीया नगरी के | श्रावकों को क्या कष्ट आ पडा था, जो उन्होंने अन्य देव की पूजा की ? जेठा कहता है। | "गोत्र देवता की पूजा की " सो यह किस पाठ का अर्थ है ? गोत्र देवता की किसी भी
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