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________________ ८. कयबलिकम्मा शब्दका अर्थ : आठवें प्रश्नोत्तर में जेठेमूढमति ने 'कयबलिकम्मां' शब्द जो देवपूजा का वाचक है, उसका अर्थ फिराने के वास्ते जैसे कोई आदमी समुद्र में गिरे बाद निकल ने को हाथपैर मारता है वैसे निष्फल हाथपैर मारे हैं और अनजान जीवों को अपने फंदे में फंसाने के वास्ते बिना प्रयोजन सूत्रों के पाठ लिख लिख कर कागज काले किये है। तथापि इससे इस की कुछ भी सिद्धि होती नहीं है, क्योंकि उस के लिखे ११. प्रश्नों के उत्तर नीचे मूताबिक हैं। प्रथम प्रश्न में लिखा है कि "भद्रा सार्थवाही ने बौडी में किस की प्रतिमा पूजी" इसका उत्तर-बौडी में ताक आला गोख वगैरह में अन्य देव की मूर्तियां होंगी। उस की पूजा की है, और बाहिर निकल के नाग भूतादि की पूजा की है; इस में कुछ भी विरोध नहीं है । आजकल भी अनेक बौडियों में ताक वगैरह में अन्य देवों की मूर्तियां वगैरह होती हैं। तथा वैष्णव ब्राह्मण वगैरह अन्यमतावलंबी स्नान कर के उसी ठिकाने खडे हो के अंजलि कर के देव को जल अर्पण करते हैं, सो बात प्रसिद्ध है, और यह भी बलि कर्म है। दूसरे तीसरे प्रश्न में लिखा है कि "अरिहंत ने किस की प्रतिमा पूजी" अरे मूढ ढूंढको! नेत्र खोल के देखोगे, तो दिखेगा, कि सूत्रों में अरिहंत ने सिद्ध को नमस्कार किये का अधिकार है, और गृहस्थावस्था में तीर्थंकर सिद्ध की प्रतिमा पूजते है। इसी तरह यहां भी श्रीमल्लिनाथ स्वामी ने कयबलिकम्मा शब्द से सिद्ध की प्रतिमा की पूजा की है। ४ - ५ - ६ - ७ में प्रश्न के अधिकार में लिखा है कि "मजन घर में किस की पूजा करी" इसका उत्तर - जहां मजन घर है वहां ही देव गृह है, और उस में रही देव की प्रतिमा पूजी है । देहरासर (मंदिर) दो प्रकार के होते हैं । घर देहरासर (घर चैत्यालय) और बडा मंदिर, उनमें द्रौपदी ने प्रथम घर चैत्यालय की पूजा कर के पीछे बडे मन्दिर में विशेष रीति से सत्रह प्रकार की पूजा की है । आजकल भी यही रीति प्रचलित है । बहुत श्रावक आपने घर देहरासर में पूजा कर के पीछे बडे मंदिर में वन्दना पूजा करने को जाते हैं । द्रौपदी के अधिकार में वस्त्र पहिनने की बाबत तो पीछे से लिखा है सो बडे मंदिर में जाने योग्य विशेष सुन्दर वस्त्र पहिने हैं । परन्तु " प्रथम वस्त्र पहिने ही नहीं थे, नग्न ही स्नान करने को बैठी थी" ऐसा जेठे ने कल्पना कर के सिद्ध किया है। सो ऐसी महा विवेकवती राजपुत्री को संभवे ही नहीं है। यह रूढि तो प्रायः आजकल की निर्विवेकिनी स्त्रियों में विशेषतः है। १ कई विवेकवती स्त्रियां आजकल भी नग्नपणे स्नान नहीं करती हैं, विशेष कर के पूजा करन वाली स्त्रियों को तो इस बात का प्रायः जरूर ही ख्याल रखना पडता है; और श्राद्ध विधि विवेक विलासादि शास्त्रो में नग्नपणे स्नान करने की मनाई भी लिखी है। दक्षिणी लोकों की औरतें प्रायः कपडे सहित ही स्नान करती है, अधिक बेपडद होना तो प्रायः पंजाब देश में ही मालूम होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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