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१३. श्रीसमवायांगसूत्र में २५. बोल वंदना में करने कहे हैं, ढूंढक नहीं करते हैं। १४. श्रीनंदीसूत्र में १४००० सूत्र कहे हैं, ढूंढिये नहीं मानते हैं, ऊपर लिखे
मुताबिक अधिकार सूत्रों में कहे हैं, इन की भी ढूंढकों को खबर नहीं
मालूम देती है, तो फिर इनको शास्त्रों के जाणकार कैसे मानीए ? अब कितनेक अज्ञानी ढूंढक ऐसे कहते हैं, कि हम तो सूत्र मानते हैं नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका नहीं मानते हैं । इसका उत्तर :
१. सूत्र में कहा है कि- "अत्थं भासेइ अरहा सुत्तं गुत्थंति गणहरा निउणा"। ___ अर्थ- सूत्र तो गणधरों के रचे हैं और अर्थ अरिहंत के कहे हैं तो सूत्र मानना, और अर्थ बताने वाली नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका नहीं माननी यह प्रत्यक्ष जिनाज्ञा विरुद्ध नहीं हैं ? जरूर है। २. श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्र में कहा है कि व्याकरण पढे बिना सूत्र वांचे उसको मृषा
बोलने वाला जानना सो पाठ यह है, नामक्खाय निवाय उवसग्ग तड्विय समास संधि पय हेउ जोगिय उणाइ किरिया विहाण धाउसर विभित्तिवन्नजुत्तं तिकालं दसविहं पि सञ्चजह भणियं तह कम्मुणा होइ दुवालस विहाय होइ भासा वयणंपिय होइ सोलसविहं एवं अरिहंत मणुन्नायं समिक्खियं संजएणं कालंमिय वत्तव्वं ॥ ___अर्थ- नाम, आख्यात, निपात, उपसर्ग, तद्धित, समास, संधि, पद, हेतु, यौगिक, उणादि, क्रिया विधान, धातु, स्वर, विभक्ति, वर्ण युक्त, तीन काल, दश प्रकार का सत्य, बारह प्रकार की भाषा, सोलह प्रकार का वचन जानना, इस प्रकार अरिहंत ने आज्ञा की है, ऐसे सम्यक् प्रकार से जानके, बुद्धि द्वारा विचार के साधु को अवसर अनुसार बोलना चाहिये। ___इस प्रकार सूत्र में कहा है, तो भी ढूंढ़िये व्याकरण पढ़े बिना सूत्र पढ़ते हैं, तो अब विचारना चाहिये, कि पूर्वोक्त वस्तुओं का ज्ञान विना व्याकरण के पढे कदापि नहीं हो सकता है, और व्याकरण का पढन ढूंढ़िये अच्छा नहीं समझते हैं, तो पूर्वोक्त पाठ का अनादर करने से जिनाज्ञाके उत्थापक इनको समझना चाहिये कि नहीं जरूर समझना चाहिये।
३. श्रीसमवायांगसूत्र तथा नंदिसूत्र में कहा है किआयारेणं परित्ता वायणा संक्खिजा अणुओगदारा संक्खिज्जा वेढा संक्खिजा सिलोगा संक्रूिाजाओ निजुत्तिओ संक्खिजाओ पडिवत्तिओ संक्खिजाओ संघयणीओ इत्यादि ।
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