________________
२६
सम्यक्त्वशल्योद्धार
तो टोपी पगडी आदि रखनी चाहिये । २. श्रीनिशीथसूत्र के पांचवें उद्देश में कहा है कि विना प्रमाण रजोहरण रखे,
अथवा रखने वाले को सहायता देवे, तो प्रायश्चित्त आवे, और ढूंढियों का रजोहरण शास्त्रोक्त प्रमाण सहित नहीं है। श्रीनिशीथसूत्र का पाठ यह है जे भिक्खु अइरेग पमाणरयहरणं धरेइ धरतं वा साइजइतं सेवमाणे
आवजइ मासिय परिहारठ्ठाणं उग्घाइयं ।। ३. श्रीनिशीथसूत्र के १८ वें उद्देश में नये कपडे को तीन पसली रंग देना
कहा है, ढूंढक नहीं देते हैं । पाठो यथा जे भिक्खु णवएमेवत्थे लड्वे तिकट्ठ बहुदिव सिपणं लोघेण वा कक्केण वा ण्हाणवापउम चुणेण्ण वा वणेण्ण वा उल्लो लेज वा उवट्टेज वा
उल्लोलंतं वा उवहृतं वा साईजइ ४. श्रीउत्तराध्ययनसूत्र के २६ वें अध्ययन में पडिलेहणा का विधि कहा है|
उस मुताबिक ढूंढक नहीं कहते हैं, श्रीभगवती, आचारांग, दश वैकालिक आदि सूत्रों में डंडा रखना कहा है, ढूंढक रखते नहीं हैं। श्रीभगवतीसूत्र शतक ८ उद्देश ६ में कहा है - ५. यतः
एवं गोच्छग रयहरणं चोलपट्टग कंबल लठ्ठी संथारग वत्तव्वा भाणियव्वा । ६. श्रीआवश्यक प्रमुख सूत्रों में पञ्चक्खाण के आगार कहे हैं, ढूंढिये आगार
सहित पच्चखाण नहीं कराते हैं? ७. श्रीभगवतीसूत्र में निर्विशेष मानना कहा है, ढूंढक नहीं मानते हैं। ८. श्रीभगवतीसूत्र में नियुक्ति माननी कही है, ढूंढक नहीं मानते हैं । ९. सूत्रों में साधु के रहने के मकानका नाम उपाश्रय कहा है, और ढूंढकों ने
मनःकल्पित थानक नाम रखा लिया है । १०. श्रीअनुयोगद्वारसूत्र में उज्ज्वल वस्त्र पहन ने वाले को भ्रष्टाचारी द्रव्य
आवश्यक करने वाला कहा है, और ढूंढक उज्ज्वल वस्त्र पहनते हैं। ११. सूत्र में गृहस्थ को आहार दिखाना मना किया है और ढूंढक घर घर में
दिखाते फिरते हैं। १२. श्रीआवश्यकसूत्र में अप्भुठ्ठिउमिकी पट्टी पढनी कही हैं, ढूंढक नहीं पढते हैं। श्रीठाणांत्रसूत्र के दशवें ठाणे में भी आगार सहित पञ्चक्वाण लिखा है।
१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org