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________________ २५ १८३. एक आर्या (साध्वी) महाविदेह से मुहपत्ती ले आई। १८४. थूलिभद्र वेश्या के घर रहा । १८५. सिंह गुफावासी साधु नैपाल देश से रत्नकंबल लाया । १८६. दिगंबर मत निकला। १८७. विष्णु कुमार का संबंध । १८८. सलाका, प्रतिसलाका, महासलाका और अनवस्थित इन चार प्यालों का अधिकार । १८९. वीस विहरमान का अधिकार । १९०. दश प्रकार का कल्प । १९१. जंबूस्वामी के निर्वाण पीछे दश बोल व्यवच्छेद हुए। १९२. गौतमस्वामी तथा अन्य गणधरों का परिवार । १९३. अठावीस लब्धियों के नाम तथा गुण । १९४. असझाइयों का काल प्रमाण । १९५. बारह चक्री, नव बलदेव, नव वासुदेव, नव प्रतिवसुदेव, किस किस. प्रभु के वक्त में और किस किस प्रभु के अंतर में हुए। १९६. सर्व नारकियों के पाथडे, अंतरे, अवगाहना तथा स्थिति । १९७. सीझना द्वार बडा । १९८. नरक की ९९ पडतला (प्रतर) । १९९. जंबूस्वामी की आयु । २००, देवलोक की ६२ पडतलां । २०१. पक्खी को पैंठका व्रत । २०२. लोच करा के सर्व-साधुको वन्दना करनी । २०३. दीक्षा देते चोटी उखाडना । २०४. अधिक मास होवे तो पांच महिने का चौमासा करना अब बत्तीस सूत्रों में जो जो बोल कहे हैं और ढूंढक मानतें नहीं हैं, उन में से थोडे बोल निष्पक्षपाती, न्यायवान, भगवान की वाणी सत्य मानने वाले और सुगति में जाने वाले भव्य जीवों के ज्ञान के वास्ते लिखते हैं। १. श्रीप्रश्नव्याकरण सूत्र के पांचवें संवरद्वार में साधु के उपकरण भगवान् ने कहे हैं जिस का मूल पाठ अर्थसहित प्रथम लिख चुके हैं, अब विचारना चाहिये कि यदि ढूंढक स्वलिंगी हैं, तो पूर्वोक्त भगवत्प्रणीत उपकरण क्यों नहीं रखते हैं ? यदि अन्यलिंगी हैं तो गेरु के रंगे कपडे रखने चाहिये, जिससे भोले लोग फंदे में फंसे नहीं और यदि गृहस्थ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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