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________________ २३ १२५. रावण का बहनोई खरदूषण । १२६. रावण की रानी का नाम मंदोदरी । १२७. रावण के पुत्र का नाम इंद्रजित । १२८. रावण की लंका सोने की। १२९. पवनंजय तथा अंजना सती का पुत्र हनुमान और इन का चरित्र । १३०. लक्ष्मणजी की माता का नाम सुमित्रा । १३१. सीता ने धीज की । १३२. जरासंघ की बेटी जीवजसा । १३३. जराविद्या नेमिनाथ के चर्ण जल से (स्नात्राजल) भाग गई। १३४. कुंती का बेटा कर्ण । १३५. पांडवों ने जूए में द्रौपदी हारी । १३६. वसुदेव की ७२००० स्त्री । १३७. वसुदेव पूर्वभव में नंदिषेण था और उसने साधु की वैयावच्च की। १३८. हरकेशी मुनि का पूर्वभव । १३९. पांचवें आरे में सौ सौ वर्षे ६ महिने आयु घटे । १४०. पांचवें आरे का जव (जौ)का आकार । १४१. पांचवें आरे लगते १२० वर्ष का आयु। १४२. संपूर्ण पदवी द्वार । १४३. भरतजी की आरी से भवन में अंगूठी गिरी । १४४. भरतजी को देवता ने साधु का वेष दिया । १४५. साधु का भेष देख कर रानियां हँसने लगी। १४६. श्रीऋषभदेवजी ने पारणे में १०८ घड़े इक्षु रस के पीए । १४७ मरुदेवी माता ने ६५००० पीढियां देखीं। १४८. मरुदेवी माता को रोते रोते आंखों में पडल आ गये । १४९. श्रीऋषभदेव तथा श्रेयांस कुमार का पूर्वभव । १५०. भरतजी ने पूर्वभव में पांच सौ मुनियों को आहार ला कर दिया। १५१. बाहुबली ने पूर्वभव में पांचसौ मुनियों की वैयावच्च की १५२. श्रीऋषभदेवजी ने पूर्वभव में बैलों को अंतराय दिया । इस वास्ते एक. वर्ष तक भूखे रहे। १५३. प्रद्युम्न कुमार हरा गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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