SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ सम्यक्त्वशल्योद्धार Ho ? ' ४१. सम्यक्त्व देते हो तब २५. व्रत कराते हो, सो किस० ? ४२. बड़ी सम्यक्त्व देते हो तब (१०८) व्रत कराते हो, सो कि० ? ४३. व्रत बेला इत्यादि के पारणे पोरसी करे तो दूना फल कहते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? ४४. बेले से ले कर आगे पांच गुने व्रत फल की संख्या कहते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? ४४. चार चार महिने आलोयणा करते हो, सो किस० ? ४६. पोसह करे तो ११ ग्यारवाँ बडा ब्रत कहते उच्चराते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? ११ ग्यारवाँ छोटा ब्रत कहते पोसह पारना कहते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? ४८. सामायिक करे तो नवमा व्रत कह के उच्चारना कहते हो, सो किस शास्त्रानुसार २ ४९. सामायिक करते वक्त एक दो मुहूर्त तथा दो चार घडियां ऐसे कहना, सो किस शास्त्रानुसार ? ५०. सामायिक पारने वक्त नवमा सामायिक व्रत कह के पारना, सो किस शास्त्रानुसार ? ५१. व्रत कर के पानी पीना हो तो पोसह न करे, संवर करे, कहते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? ५२. जब कोई दीक्षा लेने वाला हो तब उस के नाम से पुस्तक तथा वस्त्र पात्र लेते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? ५३. जब आहार करते हो तब पात्रों के नीचे कपड़ा बिछाते हो, जिस का नाम मांडला कहते हो, सो किस शास्त्रानुसार ? ५४. सामायिक जिस विधि से करते हो, सो किस० ? ५५. सामायिक पारने का विधि किस शास्त्रानुसार ? ५६. पोसह करने का विधि किस शास्त्रानुसार ? ५७. पोसह पारने का विधि किस शास्त्रानुसार ? इस प्रश्नका मतलब यह है कि लगातार दो व्रत करे तो पांचव्रत का फल होवे, तीन करे तो पञ्चीस, चार करे तो सवासौ, पांच करे तो सवाछैसो, छै व्रत करे तो सवा इकतीस सौ ३१२५ व्रतका फल होवे इत्यादि । गुजरात मारवाड़ के कितनेक ढूंढियों में यह रिवाज है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy