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________________ ॥ सर्नवाञ्छित प्रदायक श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ।। ॥ परमाराध्यपाद श्रीमदात्म-कमल-वीर-दान-प्रेम-रामचन्द्रसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। सम्यक्त्व-शल्योद्धार ग्रंथ-पारंभ मूर्ति निधाय जैनेन्द्रीं सयुक्तिशास्त्रकोटिभिः । भव्यानां हृद्विहारेषु लुम्पन् ढुण्ढककिल्विषम् ॥१॥ सम्यक्त्व-गात्रशल्यानां व्याप्यानां विश्वदुर्गतेः । कदङ्कनक उद्धारं नत्वा स्याद्वाद ईश्वरम् ।। २ ।। युग्मम् ।। ढूंढक मत की उत्पत्ति वगैरह : ___प्रथम प्रश्न में ढूंढकमती कहते हैं " भस्मग्रह उतरा और दया धर्म प्रसरा" अर्थात् भस्मग्रह उतरे बाद हमारा दया धर्म प्रकट हुआ, इस कथन पर प्रश्न पैदा होता है कि क्या पहिले दया धर्म नहीं था ? उत्तर - था ही परंतु श्रीकल्पसूत्र में कहा है कि श्री महावीर स्वामी के निर्वाण बाद दो हजार वर्ष की स्थितिवाला तीसवाँ भस्मग्रह प्रभु के जन्म नक्षत्र पर बैठेगा । जिस से दो हजार वर्ष तक साधु साध्वी की उदित उदित | पूजा नहीं होगी, और भस्मग्रह उतरे बाद साधु साध्वी की उदित उदित पूजा होगी। भस्मग्रह के प्रभाव से जिन की पूजा मंद होगी उन की पूजा प्रभावना भस्मग्रह के उतरे बाद विशेष होगी । इस मूताबिक श्रीआनंदविमलसूरि, श्रीहेमविमलसूरि, श्रीविजयदानसूरि, श्रीहीरविजयसूरि और खरतर गच्छीय श्रीजिनचंद्रसूरि वगैरह ने क्रियोद्धार किया । तब से ले के आज तक त्यागी संवेगी साधु साध्वी की पूजा प्रभावना दिनप्रतिदिन अधिक अधिकतर होती जाती है और पाखंडियों की महिमा दिनप्रतिदिन घटती जाती है। यह बात इस वक्त प्रत्यक्ष दिखाई देती है । इस वास्ते श्रीकल्पसूत्र का पाठ अक्षर अक्षर सत्य है । परंतु जेठमल्ल ढूंढक के कथनानुसार श्रीकल्पसूत्र में ऐसे नहीं लिखा है कि गुरु बिना का एक मुख बंधों का पंथ निकलेगा जिस का आचार व्यवहार श्रीजैनमत के सिध्दान्तों से विपरीत होगा । उस पथ वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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