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सम्यक्त्वशल्योद्धार
की पूजा होगी और उसका चलाया दयामार्ग दीपेगा ! इस वास्ते जेठमल्ल का कथन सत्य का प्रतिपक्षी है। लौकिक दृष्टांत भी देखोः १. जिन आदमी को रोग हुआ हो उस रोग की स्थिति के परिपक्क हुए रोग के नाश होने पर वही आदमी नीरोगी हो या दूसरा ? २. जिस स्त्री को गर्भ रहा हो, गर्भ की स्थिति परिपूर्ण हुए वही स्त्री पुत्र प्रसूत करे या दूसरी ? ३. जिस बालक की कुडमाई (मांगनी) हुई हो विवाह के वक्त वही बालक पाणिग्रहण करे या दूसरा ? इन दृष्टांतो के मुताबिक भस्मग्रह के प्रभाव से जिन साधु साध्वी की उदय उदय पूजा नहीं होती थी, भस्मग्रह के उतरे बाद उनकी ही उदित उदित पूजा होती है, परंतु ढूंढक पहिले नहीं थे कि भस्मग्रह के उतरे बाद उन की उदित पूजा हो। इस वास्ते जेठमल्ल का लिखना सत्य नहीं है।
तथा श्रीवग्गचुलियासूत्र में कहा है कि बाईस २२. गोठिल्ले पुरुष काल कर के संसार में नीच गति में और बहुत नीच कुल में परिभ्रमण कर के मनुष्य भव पावेंगे और सिध्दान्त से विरुद्ध उन्मार्ग को स्थापन करेंगे, जैन धर्म के और जिन प्रतिमा के उत्थापक निंदक होवेंगे और जगत् निंदनीय कार्य के करने वाले होवेंगे, इस मुताबिक ढूंढक पंथ बाईस पुरुषों का निकाला हुआ है और इस समय यह बाईस टोले के नाम से प्रसिद्ध है। श्रीवग्गचूलियासूत्र का पाठ :
तेसठिमे भवे मझविसएसु सावयवाणीयकुलेसु पुढो पुढो समुप्पजिस्संतितएणं ते दुवीस वाणीयगा उम्मुक्क बालवत्था विण्णाय परिणय मित्ता दुठ्ठा धिट्ठा कुसीला परवंचना खलुंका पुत्वभवमिच्छत्तभावओ जिणमग्गपडिणीया देवगुरुनिंदणया तहारूवाणं समणाणं माहणाणं पडिदुछकारिणा जिणपण्णत्तं तत्तमन्नहापरुविणो बहूणं नरनारी सहस्साणं पुरओ नियगप्पा नियकप्पियं कुमग्गं आधवेमाणा पण्णवेमाणा जिणपडिमाणं भंजणयाणं हीलंता खिसंता निंदता गरिहंता परिहवंता चेइयतीत्थाणि साहु साहूणीय उठावइस्संति ॥
भावार्थ - त्रयसठवें ६३. भवे मध्यखंड के विषे श्रावक बनिये के कुल में भिन्न भिन्न उत्पन्न होंगे,, बाद वे बाईस बनिये बाल्यावस्था को छोड के विज्ञानसहित, दुष्ट, धीठ, कुशीलिये, परकों ठगनेवालें, अविनीत, पूर्व भव के मिथ्यात्व भाव से 'जिन मार्ग के प्रत्यनीक (शत्रु), देव गुरु के निंदक, तथारूप जे श्रमण माहण साधु उन के साथ दुष्टता के करने वाले, जिन प्ररूपित धर्म के अनजान, हजारों नरनारियों के आगे अपने आप कल्पना कर के कुमार्ग को सामान्य प्रकार कहते हुए, विशेष प्रकारे कहते हुए, हेतु दृष्टांत प्ररूपते हुए, जिन प्रतिमा के तोडने वाले हीलना करते हुए, खींसना करते हुए, निंदा करते हुए, गरहा करते हुए, पराभव करते हुए, चैत्य (जिन प्रतिमा) तीर्थ और साधु साध्वी को उत्थापेंगे।
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