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________________ १६८ सम्यक्त्वशल्योद्धार वर्ष की पर्याय वाला सुवर्णभावना अध्ययन पढे, पंद्रह वर्ष की पर्याय वाला चारणभावना अध्ययन पढे । सोलह वर्ष की पर्याय वाला तेयनिसग्ग अध्ययन पढे । सत्रह वर्ष की पर्याय वाला आशीविष अध्ययन पढे, अठारह वर्ष की पर्याय वाला दृष्टिविष भावना अध्ययन पढे, उन्नीस वर्ष की पर्याय वाला दृष्टिवाद पढे और बीस वर्ष की पर्याय वाला सर्व सूत्रों का वादी हो। मूढमति ढूंढिये कहते हैं कि श्रावक सूत्र पढे तो उन श्रावकों के चारित्र की पर्याय कितने कितने वर्ष की है सो कहो ? अरे मूढ़मतियों ! इतना भी विचार नहीं करते हो कि सूत्र में साधु को भी तीन वर्ष दीक्षा पर्याय पीछे आचारांग पढ़ना कल्पे ऐसे खुलासा कहा है तो श्रावक सर्वथा ही न पढे ऐसा प्रत्यक्ष सिद्ध होता है। श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्रके दूसरे संवरद्वार में कहा है कि तं सञ्चं भगवंत तित्थगर सुभासियं दसविहं चउदस पुव्वीहिं पाहुडत्थवेइयं महरिसिणय समयप्पदिन्नं देविंद नरिंदे भासियत्थं । ___ भावार्थ यह है कि भगवंत वीतराग ने साधु सत्य वचन जाने और बोले इस वास्ते सिद्धांत उन को दिये, और देवेंद्र तथा नरेंद्र को सिद्धांत का अर्थ सुन के सत्य वचन बोले । इस वास्ते अर्थ दिया इस पाठ में भी खुलासा साधु को सूत्र पढना और श्रावक को अर्थ सुनना ऐसे भगवंत ने कहा है। जेठा लिखता है कि "श्रावक सूत्र पढे तो अनंत संसारी होवे ऐसा पाठ किस सूत्र में है ? "उत्तर - श्रीदशवैकालिकसूत्र के षट्जीवनिका नामा चौथे अध्ययन तक श्रावक पढे, आगे नहीं; ऐसे श्रीआवश्यकसूत्र में कहा है। इस के उपरांत आचारांगादि सूत्रों के पढ़ने की आज्ञा भगवंत ने नहीं दी है, तो भी जो श्रावक पढते हैं वे भगवंत की आज्ञा का भंग करते हैं। और आज्ञाभंग करने वाला यावत् अनंत संसारी हो ऐसे सूत्रों में बहुत ठिकाने कहा है, और ढूंढिये भी इस बात को मान्य करते है। जेठा लिखता है कि "श्रीउत्तराध्ययनसूत्र में श्रावक को 'कोविद' कहा है, तो सूत्र पढे बिना 'कोविद' कैसे कहा जावे ? " उत्तर - 'कोविद' का अर्थ 'चतुर - समझवाला' ऐसा होता है तो श्रावक जिनप्रवचन में चतुर होता है। परंतु इस से कुछ सूत्र पढे हुए नहीं सिद्ध होते हैं। यदि सूत्र पढे होवें तो "अधित" क्यों नहीं कहा ? जेठा मंदमति लिखता है कि "श्रीभगवतीसूत्र में केवली आदि दश के समीप केवली प्ररूप्या धर्म सुन के केवलज्ञान प्राप्त करे उन को 'सुञ्चा केवली' केवली कहना ऐसे कहा है । उन दश बोलों में श्रावक श्राविका भी कहे हैं तो उनके मुख से केवली प्ररूप्या धर्म सुने सो सिद्धांत या अन्य कुछ होगा ? इस वास्ते सिद्धांत पढने की आज्ञा सब को मालूम होती है। उत्तर - सिद्धांत पढ के सुनाना उसका नाम ही फक्त केवली प्ररूपित धर्म नहीं है परंतु जो भावार्थ केवली भगवंत ने बताया है सो भावार्थ कहना उस का नाम भी केवली प्ररूप्या धर्म ही कहलाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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