SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६७ लद्धठ्ठा गहियठा पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा । अर्थ- प्राप्त करा है अर्थ जिन्हों ने, ग्रहण किया है अर्थ जिन्हों ने, संशय के होने पर पूछा है अर्थ जिन्हों ने, प्रश्न करके अर्थ निर्णय किया है जिन्हों ने, इस वास्ते निश्चित किया है अर्थ जिन्हों ने । इस तरह कहा परंतु "लद्ध सुत्ता गहिय सुत्ता" ऐसे नहीं कहा है तथा श्रीव्यवहारसूत्र के दश में उदेशमें कहा है, यत - तिवास-परियागस्स निग्गंथस्स कप्पइ आयारकप्पे नामं अज्झयणे उदिसित्तए वा, चउवास-परियागस्स निग्गंथस्स कप्पति सूयगडे नामं अंगे उदिसित्तए ना, पंचवासपरियागस्स समणस्स कप्पति दसाकप्पववहारा नामज्झयणे उदिसित्तए, अठनास-परियागस्स समणस्स कप्पति ठाणं समनाए नामं अंगे उदिसित्तए दसवास-परियागस्स कप्पति विवाहनामं अंगे उदिसित्तए एक्कारस-वास परियागस्स कप्पति खुड्डियाविमाणपविभत्ति महल्लिया विमाणपविभत्ति अंगचूलिया वागचूलिया विवाहचूलिया नामं उदिसित्तए, बारसवास-परियागस्स कप्पति अरुणोववाए वरुणोववाए गरुलोववाए धरणोववाए वेसमणोववाए वेलंधरोववाए अज्झयणे उदिसित्तए, तेरसवास-परियाए कप्पति उहाणसुए समुठ्ठाणसुए देविंदोववाए नागपरियावलिया नाम अज्झयणे उदिसित्तए, चउदसवास परियागस्स कप्पति सुवण्ण-भावणा-नामं अज्झयणं उदिसित्तए, पन्नरसवास० कप्पति चारणभावणा नामं अज्झयणे उधिसित्तए, सोलसवास० कप्पति तेयणिसग्गं नामं अज्झयणे उदिसत्तए, सत्तरसवास० कप्पति आसीविस-नामं अज्झयणे उदिसित्तए, अठारस वास० कप्पति दिठिविसभावणानामं अज्झयणे उदिसित्तए, एगुण-वीसइवास-परियागस्स कप्पति दिठिवाए नाम अंगे उदिसित्तए वीस-वास-परियाए समणे निग्गंथे सव्वसूआण वाइ भवति ।। अर्थ - तीन वर्ष की दीक्षापर्याय वाले साधु को आचारप्रकल्प अर्थात् आचरांगसूत्र पढ़ना कल्पे हैं, चार वर्ष की दीक्षा वाले को श्रीसूयगडांगसूत्र पढ़ना कल्पे हैं । पांच वर्ष के दीक्षित को दशाकल्प तथा व्यवहार अध्ययन पढ़ने कल्पे हैं । आठ वर्ष की पर्याय वाले को ठाणांग समवायांग पढ़ना कल्पे है । दश वर्ष की पर्याय वाले को श्रीभगवतीसूत्र पढ़ना कल्पे है । इग्यारह वर्ष की पर्याय वाला साधु खुडिया विमान प्रविभक्ति, महल्लिया विमानप्रविभक्ति, अंगचूलिया, वग्गचूलिया और विवाहचूलिया पढे । बारह वर्ष की पर्याय वाला अरुणोपपात, नरुणोपपात गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात और नेलंधरोपपात पढे, तेरह वर्ष की पर्याय वाला उवठ्ठाणश्रुत समुठ्ठाणश्रुत देवेंद्रोपपात और नागपरियावलिया अध्ययन पढे । चौदह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy