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________________ सम्यक्त्वशल्योद्धार जिनपूजा की है, और उस से उसी भव में मोक्ष गये हैं । यह अधिकार श्रीसत्रह भेदी पूजा के चरित्रों में है, और सत्रह भेदी पूजा श्रीरायपसेणीसूत्र में कही है । १४८ इत्यादि अनेक ठिकाने जिनप्रतिमा पूजने का महाफल कहा है । इस वास्ते जेठे की लिखी सर्व बातें स्वमतिकल्पना की हैं । जेठे ने द्रौपदी की जिनप्रतिमा की पूजा बाबत यहां कितनीक कुयुक्तियां लिखी है, | परंतु उन सर्व का प्रत्युत्तर प्रथम ( १२ ) वें प्रश्नोत्तर में खुलासा लिख आये हैं । जेठा लिखता है कि पानी, फल, फूल, धूप, दीप वगैरह के भगवंत भोगी नहीं हैं । | जेठे के सदृश श्रद्धा वाले ढूंढियों को हम पूछते हैं कि तुम भगवंत को वंदना नमस्कार करते हो तो क्या प्रभु वंदना नमस्कार भोगी हैं ? क्या प्रभु ऐसे कहते हैं कि मुझे वंदना नमस्कार करो ? जैसे भगवंत वंदना नमस्कार के भोगी नहीं हैं और आप कहते भी नहीं। हैं कि तुम मुझे वंदना नमस्कार करो । वैसे ही पानी, फल, फूल, धूप, दीप बगैरह के प्रभु भोगी नहीं हैं, आप कहते नहीं हैं कि मेरी पूजा करो, परंतु उस कार्य में तो करने वाले की भक्ति है, महालाभ का कारण है, सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है । और उस से बहुत जीव भवसमुद्र से पार हो गए हैं, ऐसे शास्त्रों में कहा है । इस लिये इस में जिनेश्वर की आज्ञा भी है । ॥ इति ॥ ३४. महिया शब्द का अर्थ : श्रीलोगस्स "कित्तिय वंदिय महिया " ऐसा पाठ श्रीआवश्यकसूत्र का है, इन में प्रथम के दो शब्दों का अर्थ "कीर्त्तिताः - कीर्त्तना की और वंदिताः वंदना करी" ऐसा है | अर्थात् यह दोनों शब्द भावपूजावाची हैं, और तीसरे शब्द का अर्थ महिताः पुष्पादिभिः ' - पुष्पादिक से पूजा की है, अर्थात् महिया शब्द द्रव्यपूजावाची है। टीकाकारों ने तथा प्रथम टब्बा बनाने वालों ने भी ऐसा ही अर्थ लिखा है । परंतु कितनीक प्रतियों में ढूंढियों ने सच्चा अर्थ फिरा कर मनःकल्पित अर्थ लिख दिया है । उस मुताबिक जेठमल भी इस प्रश्न में 'महिया' शब्द का अर्थ "भावपूजा " ठहराता है सो मिथ्या है 1 Jain Education International जेठमल फूलों से श्रावक पूजा करते हैं उस में हिंसा ठहराता है सो असत्य है । क्योंकि पुष्पपूजा से तो श्रावकों ने उन पुष्पों की दया पाली है, विचारो कि माली फूलों की चंगेर लेकर बेचने को बैठा है । इतने में कोई श्रावक आ निकले और विचारे कि पुष्पों को वेश्या ले जावेगी तो अपनी शय्या में बिछा के उस पर शयन करेगी, और उस | में कितनीक कदर्थना भी होगी । कोई व्यसनी ले जावेगा तो फूल के गुच्छे गजरे बना कर सूंघेगा, हार बना कर गले में डालेगा, या उन का मर्दन करेगा, कोई धनी गृहस्थी ले | | जावेगा तो वह भी उन का यथेच्छभोग करेगा, और स्त्रियों के शिर में गूंथे जावेंगे। जो - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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