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________________ १४९ अत्तर के व्यापारी ले जावेंगे तो चुल्हेपर चढा के उनका अत्तर निकालेंगे। तेलके व्यापारी |ले जावेगे तो फलेल वगैरह बनाने में उन की बहत विटंबना करेंगे इत्यादि अनेक विटंबना का संभव होने से प्राप्त होने वाली विटंबना के दूर करने वास्ते और अरिहंत की भक्तिरूप शुद्ध भावना निमित वे पुष्प श्रावक खरीद करके जिनप्रतिमाको चढावे तो उस से अरिहंतदेव की भक्ति होती है, और फूलों की भी दया पलती है; हिंसा क्या हुई ? __ जेठमल लिखता है कि "गणधरदेव सावध करणी में आज्ञा न देवें" उत्तर - सावद्यकरणी किस को कहना ? और निरवद्यकरणी किस को कहना ? इसका जो को और अन्य ढूंढियों को ज्ञान हो ऐसा मालूम नहीं होता है। जिन पूजादि करणी का च सावध गिनते हैं । परंतु यह उन की मूर्खता है, क्योंकि मुनियों को आहार, विहार, निहारादिक क्रिया में और श्रावकों को जिनपूजा साधर्मिवात्सल्य प्रगमा कितनीक धर्मकरणियों में तीर्थंकरदेव ने भी आज्ञा दी है, और जिस में आज्ञा हो सो करणी सावध नहीं कहलाती है । इस बाबत २७ वें प्रश्नोत्तर में खुलासा लिखा गया है । तथा गणधरमहाराजाओं ने भी उपदेश में सर्व साधु श्रावकों को अपना अपना धर्म करने का आज्ञा दी है। ढूंढियों के कहे मुताबिक गणधरदेव ऐसी करणी में आज्ञा न देते हो तो साधु को नदी उतरने की आज्ञा क्यों देते ? बरसते बरसाद में लघुनोति बडीनीति परिठवने की आज्ञा क्यों देते ? साध्वी नदी में बह जाती हो तो उस को निकाल लेने की साधु को आज्ञा क्यों देते ? इसी तरह कितनी ही आज्ञा दी है; इस वास्ते यह समझना कि जिस जिस कार्य में उन्हों ने आज्ञा दी हैं, हिंसा जान कर नहीं दी हैं ।! इस वास्ते इस बाबत जेठे मूढ़मति का लेख बिलकुल मिथ्या सिद्ध होता है। सामायिक में साधु तथा श्रावक पूर्वोक्त महिया शब्द से पुष्पादिक द्रव्यपूजा की अनुमोदना करते हैं । साधु को द्रव्यपूजा करने का निषेध है, परंतु उपदेश द्वारा द्रव्यपूजा करवाने का और उसकी अनुमोदना करने का त्याग नहीं है, ऐसा भाष्यकार ने कहा है। __ जेठमल पांच अभिगम बाबत लिखता है। परंतु पांच अभिगम में जो चित्तवस्तु का त्याग करना हे सो अपने शरीर के भोग की वस्तु का है । प्रभुपूजा के निमित्त पुष्पादि द्रव्य ले जाने का त्याग नहीं । यदि सर्व सचित्त वस्तु का त्याग करके समवसरण में जाना कहोगे तो समवसरण में जानुप्रमाण सचित्त फूलों की वर्षा होती है। सो क्यों कर ? इस बाबत सूर्याभ के अधिकार में खुलासा लिखा गया है। ॥ इति ।। |३५. छीकाया षड्काया के आरंभ बाबत : पैंतीसवें प्रश्नोत्तर में छीकाया के आरंभ निषेधने वास्ते जेठमल ने श्रीआचारांगसूत्र का पाठ लिखा है-यतः___ तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदया इमस्स चेव जीवियस्स १ परिवंदण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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