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३३. जिनप्रतिमा पूजने के फल सूत्रों में कहे हैं इस बाबत : __ ३३ वें प्रश्नोत्तर में जेठमल लिखता है कि "सूत्रों में दश सामाचारी, ता, संयम, वेयावञ्च वगैरह धर्मकरणी के तो फल कहे हैं । परंतु जिनप्रतिमा को वंदन पूजन करने का फल सत्रों में नहीं कहा है" उत्तर - जेठमल का यह लिखना बिलकल असत्य है । सूत्रों में जिन प्रतिमा को वंदन पूजन करने का फल बहत ठिकाने कहा है । नार्थकर भगवंत को वंदन पूजन करने से जिस फलकी प्राप्ति होता है उसी फलका प्रापि जिन प्रतिमा के वंदन पूजनसे होती है । क्योंकि जिनप्रतिमा जिनवर तयार तथा प्रतिमा द्वारा तीर्थंकर भगवंत की ही पूजा होती है । इस तरह जिनप्रतिमा का भक्ति करने से फलप्राप्ति के दृष्टांत सूत्रों में रहत हैं, जिन में से कितनेक यहाँ लिखते हैं :
१. श्रीजिनप्रतिमा की ..म से श्रीशांतिनाथजी के जीवने तीर्थंकर गोत्र बांधा, | यह कथन प्रथमानुयोग में है।
२. श्रीजिन प्रतिमा की पूजा करने से सम्यक्त्व शुद्ध होती है, यह कथन श्रीआचारांग की नियुक्ति में है ।
३. "थय थूइय मंगल" अर्थात स्थापना की स्तुति करने से जीव सुलभबोधी होता है। यह कथन श्रीउत्तराध्ययनसूत्र में है ।
४. जिनभक्ति करन से जीव तीर्थंकर गोत्र बांधता है । यह कथन श्रीज्ञातासूत्र में हैं। जिनप्रतिमा की जो पूजा है सो तीर्थंकर की ही है, और इसी से वीस स्थानक में से प्रथम स्थान की आराधना होती है।
५. तीर्थकर के नान गोत्र के सुनने का महाफल है ऐसे श्रीभगवतीसूत्र में कहा है, और प्रतिभा में तो नाम और स्थापना दोनों हैं । इस वास्ते उस के दर्शन से तथा पूजा से अत्यात पर।
६. जिनप्रतिमा का पूजा स संसार का क्षय होता है, ऐसे श्रीआवश्यकसूत्र में कहा है।
७. सर्व लोक में जा रहंत का प्रतिमा हैं उन का कायोत्सर्ग बोधिबाज के लाभ वास्ते साध तथा श्रावक करे, एसे श्रीआवश्यकसूत्र में कहा है।
८. जिनप्रतिमा के पूजने से मोक्षफल की प्राप्ति होती है, ऐसे श्रीरायपसेणीसूत्र में कहा है।
९. जिनमंदिर बनवाने वाला बारहवें देवलोक तक जा सकता है एसे श्रीमहानिशीथसूत्र में कहा है।
१०. श्रेणिक राजा ने जिनप्रतिमा के ध्यान से तीर्थंकरगोत्र बांधा है; यह कथन श्रीयोगशास्त्र में है।
११. श्रीगुणवर्मा महाराजा के नावट नोट में से एक एक प्रकार से
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