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सम्यक्त्वशल्योद्धार
गया । तब तो जेठे के और अन्य ढूंढियों के कहे मुताबिक विरहमान तीर्थंकर भी उसको शरण करने योग्य नहीं होगे ! समझने की तो बात यह है कि अरिहंत की शरण लेकर गया हो तो अरिहंत के समीप पीछा आ जावे । अरिहंत की प्रतिमा की शरण लेकर गया हो तो अरिहंत की प्रतिमा के समीप आ जावे । और भावितात्मा अणगार की शरण लेकर गया हो तो उसके समीप आ जावे । इस वास्ते सिद्ध होता है कि जेठेने जिनप्रतिमा के निषेध करने वास्ते झूठे अर्थ करने का ही व्यापार चलाया है । तथा जेठे की अकल का नमूना देखो कि इस अधिकार में तो बहुत ठिकाने सिद्धायतन हैं । और उन में शाश्वती जिनप्रतिमा हैं, ऐसे कबूल करता है, और पूर्वोक्त नव में प्रश्नोत्तर में तो सिद्धायतन ही नहीं हैं ऐसे कहता है । अफसोस !
२८ वें बोल में "वन को भी चैत्य कहा है" ऐसे जेठमल लिखता है। उत्तर - जिस वन में यक्षादिक का मंदिर होता है, उसी वन को सूत्रों में चैत्य कहा है, अन्य वन को सूत्रों में किसी ठिकाने भी चैत्य नहीं कहा है। इससे भी चैत्य शब्द का ज्ञान अर्थ नहीं होता है। ___ २९ वें बोल में जेठमलजी लिखते हैं कि "यक्ष को भी चैत्य कहा है"। उत्तर - यह लेख भी मिथ्या है, कि सूत्र में किसी ठिकाने भी यक्ष को चैत्य नहीं कहा है । यदि कहा हो तो अपने मन की स्थापना करने की इच्छा वाले पुरुष को सत्रपाठ लिख कर उस का स्थापन करना चाहिये । परंतु जेठमलजी ने सूत्रपाठ लिखे बिना जो मन में आया सो लिख दिया है।
३० तथा ३१ वें बोल में दुर्मति जेठा लिखता है, कि "आरंभ के ठिकाने तो चैत्य शब्द का अर्थ प्रतिमा भी होता है" उत्तर - आहा ! कैसी द्वेषबुद्धि ! ! कि जिस जिस ठिकाने जिनप्रतिमा की भक्ति, वंदना तथा स्तुति वगैरह के अधिकार सूत्रों में प्रत्यक्ष हैं| उस उस ठिकाने तो चैत्य शब्द का अर्थ प्रतिमा नहीं ऐसे कहता है , और आरंभ के स्थानमें चैत्य अर्थात् प्रतिमा ठहराता है । यह तो निःकेवल जिनप्रतिमा प्रति द्वेष दर्शाने वास्ते ही उसकी जबान ऊपर खर्ज (खुजली) हुई होगी ऐसे मालूम होता है। क्योंकि जिन तीन बातों में चैत्य शब्द का अर्थ प्रतिमा ठहराता है उन तीनों बातों का प्रत्युत्तर प्रथम विस्तार से लिखा गया है।
३२ वें बोल में चैत्य शब्द का अर्थ प्रतिमा है ऐसे जेठमलने मंजूर किया है । सो इस बात में भी उसने कपट किया है । इस लिये ऐसी बातों में लिखान करके निकम्मा ग्रंथ बढाना अयोग्य जान कर कुछ भी नहीं लिखते हैं । पूर्वोक्त सर्व हकीकत ध्यान में लेकर निष्पक्षपाती होकर जो विचार करेगा उसको निश्चय हो जावेगा कि ढूंढिये चैत्य शब्द का अर्थ साधु और ज्ञान ठहराते हैं सो मिथ्या है।
। ति ।।
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