SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ सम्यक्त्वशल्योद्धार | कि उनकी आर्या अर्थात् ढूंढिनी साध्वी का कोई शीलखंडन करे अथवा ढूंढिये | साधुओं को कोई प्रहार करे यावत् मरणांतकष्ट देवे तो भी अकल के दुश्मन ढूंढिये | श्रावक उस कार्य करने वाले को अपराधी न गिने, शिक्षा न करें, और उस का किसी प्रकार निवारण भी न करें । इस से ढूंढिये तेरापंथी भीखम के भाई हैं ऐसा जेठमल ही सिद्ध कर देता है क्योंकि उस की श्रद्धा उन जैसी ही है । यहां सत्य के खातर मालूम | करना चाहते हैं कि कितनेक ढूंढियों की श्रद्धा पूर्वोक्त जेठे सदृश नहीं है, क्योंकि वे | तो धर्म के प्रत्यनीक का निवारण करना चाहिये ऐसे समझते हैं । इस वास्ते जेठे की | श्रद्धा समस्त जैनशास्त्रों से विपरीत है इतना ही नहीं बल्कि ढूंढियों से भी विपरीत है । इस बाबत जेठे ने लिखा है "जो ऐसी भक्ति करने का जिनशासन में कहा हो तो दो साधुओं को जलाने वाला गोशाला जीता क्यों जावे ? उत्तर - यह मूढ इतना भी नहीं समझता कि उस समय वीर भगवान प्रत्यक्ष विराजते थे, और उन्हों ने भावी भाव | ऐसा ही देखा था । इस वास्ते ऐसी ऐसी कुतर्के करना सो महा मिथ्यादृष्टि अनंत संसारी का काम है । 11 इस प्रश्नोत्तर के अंत में जेठेने श्रीआचारांगसूत्र का पाठ लिखा है जिस का भावार्थ यह है कि साधु को कोई उपसर्ग करे तो साधु उस का घात न चिंते । सो यह बात तो हम भी मंजूर करते हैं । क्योंकि पूर्वोक्त पाठ में कहे मुताबिक हरिकेशी मुनि ने अपने | मन में ब्राह्मणों के पुत्र की थोडी भी घात चिंतवन नहीं की थी । और साधु को अपने वास्ते परिषह सहने का तो धर्म ही है, परंतु जो कोई शासन को उपद्रव करे तो साधु | तथा श्रावक जिनाज्ञापूर्वक यथाशक्ति उस के निवारण करने में ही उद्युक्त हो ।। इति ।। ३१. बीस विहरमान के नाम बाबत : ढूंढियों के माने बत्तीस सूत्रों में बीस विरहमान के नाम किसी ठिकाने भी नहीं हैं । परंतु ढूंढिये मानते हैं सो किस शास्त्रानुसार ? इस प्रश्न के उत्तर में जेठमल ढूंढक | लिखता है कि "तुम कहते हो वही बीस नाम हैं ऐसा निश्चय मालूम नहीं होता है, क्योंकि श्रीविपाकसूत्र में कहा है कि भद्रनंदी कुमार ने पूर्वभव में महाविदेह क्षेत्र में पुण्डरगिणी नगरी में जुगबाहुजिन को प्रतिलाभा, और तुम तो पुंडरगिणी नगरी में | श्रीसीमंधरस्वामी कहते है सो कैसे मिलेगा ?" उत्तर - श्रीसीमंधरस्वामी पुष्कलावती | विजय में पुंडरगिणी नगरी में जन्मे हैं सो सत्य है, परंतु जिस विजय में जुगयहु जिन | विचरते हैं उस विजय में क्या पुंडरगिणी नामा नगरी नहीं होगी ? एक मान की बहुत जैसे काठियावाड सरीखे छोटेसे प्रांत ( सूबा) में भी एक तो वैसे देश में जुदी जुदी विजय में एक नाम की कई आश्चर्य नहीं है । इस वास्ते जेठमलजी की की कुयुक्ति | नगरियां एक देश में होती हैं | नाम के बहुत शहर विद्यमान नगरियां हो तो इस में कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy