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सव्वजिणाणं पडिमा वण्णपमाणेहिं नियएहिं ।।८९।। और इसी मुताबिक श्रीशत्रुजयमहात्म्य में भी कथन है? ५३. "पांडवों ने श्रीशत्रुजय ऊपर संथारा किया ऐसे सूत्र में कहा है। परंतु पांडवों ने उद्धार कराया यह बात सूत्र में नहीं है"। उत्तर - सूत्र में पांडवों ने संथारा किया यह अधिकार है और उद्धार कराया यह नहीं हैं । इस से यह समझना कि इतनी बात सूत्रकार ने कम वर्णन की है परंतु उन्होंने उद्धार नहीं कराया ऐसे सूत्रकार ने नहीं कहा है । इस वास्ते उन्हों ने उद्धार कराया यह वर्णन श्रीशत्रुजयमहात्म्यादि ग्रंथों में कथन किया है सो सत्य ही है।
५४. "पंचमी छोड़ के चौथ को संवत्सरी करते हो' उत्तर - हम जो चौथ की संवत्सरी करते हैं सो पूर्वाचार्यों की तथा युगप्रधान की परंपरा से करते हैं । श्रीनिशीथचूर्णि में चौथ की संवत्सरी करनी कही है । और पंचमी की संवत्सरी करने का कथन सूत्र में किसी जगह भी नहीं हैं । सूत्र में तो आषाढ चौमासे के आरंभ से एक महिना और बीस दिन संवत्सरी करनी, और एक महिना बीस दिन के अंदर संवत्सरी पडिक्कमनी कल्पती है। परंतु उपरांत नहीं कल्पती है, अंदर पडिक्कमने वाले आराधक हैं, उपरांत पडिक्कमने वाले विराधक हैं । ऐसे कहा है तो विचार करो कि जैनपंचांग व्यवच्छेद हए हैं। जिस से पंचमी के सायंकाल को संवत्सरी प्रतिक्रमण करने समय पंचमी है कि छठ हो गई है उस की यथास्थित खबर नहीं पडती है । और जो छठ में प्रति क्रमण करे तो पूर्वोक्त जिनाज्ञा का लोप होता है । इस वास्ते उस कार्य में बाधक का संभव है । परंतु चौथ की सायं को प्रतिक्रमण के समय पंचमी हो जावे तो किसी प्रकार का भी बाधक नहीं है । इस वास्ते पूर्वाचार्यों ने पूर्वोक्त चौथ की संवत्सरी करने की शुद्ध रीति प्रवर्तन की है सो सत्य ही है । परंतु ढूंढिये जो चोथ के दिन संध्या को पंचमी लगती हो तो उसी दिन अर्थात् चौथ को संवत्सरी करते हैं सो न तो किसी सूत्र के पाठ से करते हैं और न युगप्रधान की आज्ञा से करते हैं, किंतु केवल स्वमतिकल्पना से करते हैं।
५५. "सूत्र में चौवीस ही तीर्थंकर वंदनीय कहै हैं और विवेकविलास में कहा है कि घर देहरे में २१ इक्कीस तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापनी" उत्तर - जैनधर्मी को तो चौवीस ही तीर्थकर एक सरीखे हैं, और चौवीस ही तीर्थंकरों को वंदन पूजन करने से यावत् मोक्षफल की प्राप्ति होती है । परंतु घर नेहो में २० कीर्थकर ही प्रतिमा स्थापनी ऐसे जो विवेकविलास ग्रंथ में कहा है सो अपेक्षा वचन है, १ जे कर ढूंढिये कहें कि यह नियुक्ति आदि का पाठ है, हम नहीं मंजूर करते हैं तो उन देवानां
प्रियों को हम यह पूछते हैं कि तुम्हारे माने सूत्रों में तो भरतेश्वर का संपूर्ण वर्णन ही नहीं है तो तुम कैसे कह सकते हो कि भरतेश्वर के स्थूभ कराये का अधिकार सूत्र में नहीं है ?
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