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सम्यक्त्वशल्योद्धार
जैसे सर्व शास्त्र एक सरीखे हैं तो भी कितनेक प्रथम पहरमें ही पढे जाते हैं, दूसरे पहर में नहीं । वैसे यह भी समझना । तथा घर देहरा और बड़ा मंदिर कैसा करना, कितने प्रमाण के ऊंचे जिनबिंब स्थापन करने, कैसे वर्ण के स्थापने, किस रीति से प्रतिष्ठा करनी, किस किस तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापन करनी इत्यादि जो अधिकार है सो जो जिनाज्ञा में वर्तते हैं तथा जिनप्रतिमा के | गुणग्राहक हैं उनके समझने का है, परंतु ढूंढको सरीखे मिथ्या दृष्टि, जिनाज्ञा | से परामुख और श्रीजिनप्रतिमा के निंदकों के समझने का नहीं है ।
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५६. "श्रीआचारांगसूत्र के मूलपाठ में पांच महाव्रत की २५ भावना कही हैं और टीका में पांच भावना सम्यक्त्व की अधिक कही" । उत्तर - श्रीआचारांगसूत्र के मूलपाठ में चारित्र की २५ भावना कही हैं और नियुक्ति में पांच भावना सम्यक्त्व की अधिक कही हैं सो सत्य हैं । और निर्युक्ति माननी नंदिसूत्र के मूलपाठ में कही है, और सम्यक्त्व सर्वव्रतों का है ! जैसे मूल विना वृक्ष नहीं रह सकता है, वैसे सम्यक्त्व विना व्रत नहीं रह सकते हैं । ढूंढिये व्रत की पच्चीस भावना मान्य करते हैं और सम्यक्त्व की पांच भावना मान्य नहीं करते हैं । इस से निर्णय होता है कि उन को सम्यक्त्व की प्राप्ति ही नहीं है ।
५७. "कर्मग्रंथ में नव में गुणठाणे तक मोहनी कर्म का जो उदय लिखा है सो के साथ नहीं मिलता है" । उत्तर कर्मग्रन्थ में कही बात सत्य है । जेठमल ने यह | बात सूत्र के साथे नहीं मिलती है ऐसे लिखा है, परंतु बत्तीस सूत्रों में किसी भी ठिकाने चौदह गुणठाणे ऊपर किसी भी कर्म प्रकृति का बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता आदि गुणठाणे का नाम लेकर कहा ही नहीं है । इस वास्ते जेठमल का लिखना मिथ्या है ।
५८. "श्रीआचारांग की चूर्णि में कणेर की कांबी (छटी) फिराई - ऐसे लिखा है" उत्तर जेठमल का यह लिखना मिथ्या है । क्योंकि आचारांग की चूर्णि में ऐसा लेख नहीं है ।
५९. से ७९ पर्यंत) इक्कीस बोल जेठमल ने निशीथचूर्णि का नाम लेकर लिखे हैं वे सर्व बोल मिथ्या हैं, क्योंकि जेठमल के लिखे मुताबिक निशीथचूर्णि में नहीं हैं ।
८०. "श्रीआवश्यकसूत्र के भाष्य में श्रीमहावीरस्वामी के २७ भव कहे । उन में मनुष्य | से काल करके चक्रवर्ती हुए ऐसे कहा है" उत्तर - मनुष्य काल कर के चक्रवर्ती न हो ऐसा शास्त्र का कथन है तथापि प्रभु हुए इस से ऐसे समझना कि जिनवाणी अनेकांत है । इस वास्ते जिनमार्ग में एकांत खींचना सो मिथ्यादृष्टि का काम है । और ढूंढियों के माने बत्तीस सूत्रों में तो वीरभगवंत के २७ भवों का वर्णन ही नहीं है तो फिर जेठमल को इस बात के लिखने का क्या प्रयोजन था ?
८१. सिद्धांत में अरिष्ठनेमि के अठारह गणधर कहे और भाष्य में ग्यारह कहे सो
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