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जेठमल लिखता है कि "श्रेणिक राजा को महावीर स्वामी ने कहा कि कालकसूरिया भैंसे न मारे, कपिलादासी दान देवे, पुनिया श्रावक की सामायिक मोल ले अथवा तू नवकारसीमात्र पञ्चक्खाण करे तो तू नरक में न जावे । ये चार बातें कहीं परंतु जिनपूजा करे तो नरक में न जावे ऐसे नहीं कहा"। उत्तर-ढूंढिये जितने शास्त्र मानते हैं उन में यह कथन बिलकुल नहीं है तो भी इस बातका संपूर्ण खुलासा दशवें प्रश्नोत्तर में हमने लिख दिया है ।
जेठमल ने श्रीप्रश्नव्याकरण का पाठ लिखा है जिस से तो जितने ढूंढिये, ढूंढनियां, और उनके सेवक हैं वे सर्व नरक में जावेंगे ऐसे सिद्ध होता है । क्योंकि श्रीप्रश्नव्याकरण के पूर्वोक्त पाठ में लिखा है कि जो घर, हाट, हवेली, चौंतरा, आदि बनावे सो मंद बुद्धिया और मरके नरक में जावे । सो ढूंढिये ऐसे बहुत काम करते हैं । तथा ढूंढक साधु, साध्वी, धर्म के वास्ते विहार करते हैं, रास्ते में नदी उतरते हुए त्रस स्थावर की हिंसा करते हैं । पडिलेहण में वायुकाय हनते हैं, नाक के तथा गुदा के पवन से वायुकाय मारते हैं । सदा मुंह बांधने से असंख्यात् सन्मूर्छिम जीव मारते हैं। मेघ बरसते में सञ्चित्त पानी में लघु नीति तथा बडी नीति परठवते हैं। उस से असंख्यात अप्काय को मारते हैं, इत्यादि सैंकडों प्रकार से हिंसा करते हैं। इस वास्ते सो मंदबुद्धि यही हैं, और जेठे के लिखे मुताबिक मर के नरक में ही जाने वाले हैं। इस अपेक्षा तो क्या जाने जेठे का यह लिखना सत्य भी हो जावे ! क्योंकि ढूंढकमत दुर्गति का कारण तो प्रत्यक्ष ही दिखाई देता है। ___ और जेठमल ने "दक्षिण दिशा का नारकी हो" ऐसे लिखा है । परंतु सूत्रपाठ में दक्षिण दिशा का नाम भी नहीं है। तो उस ने यह कहां से लिखा ? मालम होता है। कि कदापि अपने ही उत्सूत्र भाषण रूप दोष से अपनी वैसी गति होने का संभव उसको मालूम हुआ होगा । और इसी वास्ते ऐसा लिखा होगा ! ! और शुद्ध मार्ग गवेषक आत्मार्थी जीवों को तो इस बात में इतना ही समझने का है कि श्री प्रश्नव्याकरणसूत्र का पूर्वोक्त पाठ मिथ्यादृष्टि अनार्यों की अपेक्षा है। क्योंकि इस पाठ के साथ ही इस कार्य के अधिकारी माछी, धीवर, कोली, भील, तस्कर, आदि ही कहे हैं, और विचार करो कि जो ऐसे न हो तो कोई भी जीव नरक बिना अन्य गति में न जावे । क्योंकि प्रायः गृहस्थी सर्व जीवों को घर, दुकान वगैरह करना पड़ता है। श्रीउपासकदशांगसूत्र में आनंद आदि श्रावकों के घर, हाट, खेत, गड्डे, जहाज, गोकुल, भट्ठियां आदि आरंभ का अधिकार वर्णन किया है, तथापि वह काल कर के देवलोक में गये हैं। इस वास्ते अरे मूर्ख ढूंढियो ! जिनमंदिर कराने से नरक में जावे ऐसे कहते हो सो तुम्हारी दुष्टबुद्धि का प्रभाव है और इसी वास्ते सूत्रकार का गंभीर १ कितनेक जूं लीख प्रमुख को कपडे की टांकी में बांध के संथारा पञ्चखाते हैं अर्थात् मारते हैं,
तथा कितनेक गूंह को ईंटों से पीसते हैं, उनमें चूरणीये मारते हैं ।
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