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"निस्सेसाए" शब्द है वहां वहां उस शब्द का अर्थ मोक्ष के वास्ते ऐसा ही होता है। और सो शब्द जिनप्रतिमा के पूजने के फल में भी है तो फक्त एक मूठमति जेठमल के कहने से महाबुद्धिमान् पूर्वाचार्यकृत शास्त्रार्थ कदापि फिर नहीं सकता है?
३२. जेठमल निन्हवने ओघनियुक्ति की टीका का पाठ लिखा है सो भी असत्य है, क्योंकि ऐसा पाठ ओघनियुक्ति में तथा उस की टीका में किसी जगह भी नहीं है । यह लिखना जेठमल का ऐसा है कि जैसे कोई स्वेच्छा से लिख देवे कि "मुंहबंधों का पंथ किसी चमार का चलाया हुआ है क्योंकि इनका कुछ आचारव्यवहार चमारों से भी बुरा है ऐसा कथन प्राचीन ढूंढक नियुक्तिमें है"
३३. इस प्रश्नोत्तर में आदि से अंत तक जेठमल ने सूर्याभ जैसे सम्यग्दृष्टि देवता की और उस की शुभ क्रिया की निंदा की है, परंतु श्रीठाणांगसूत्र के पांचवें ठाणे में कहा है कि पांच प्रकार से जीव दुर्लभ बोधि होगा अर्थात् पांच काम करने से जीवों को जन्मांतर में धर्मकी प्राप्ति दुर्लभ होगी यत - ___ पंचहिं ठाणेहिं जीवा दुल्लहबोहियत्ताए कम्मं पकरेंति । तंजहा । अरिहंताणं अवण्णं वयमाणे १ अरिहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वयमाणे २ आयरिय उवझायाणं अवण्णं वयमाणे ३ चाउवण्णस्स संघस्स अवण्णं वयमाणे ४ विविक्कतवबंभचेराणं देवाणं अवण्णं वयमाणे ।।५।। ___उपर के सूत्रपाठ के पांचवें बोल में सम्यग्दृष्टि देवता के अवर्णवाद बोलने से दुर्लभ बोधि हो ऐसे कहा है । इस वास्ते अरे ढूंढियो ! याद रखना कि सम्यग्दृष्टि देवता के अवर्णवाद बोलने से महा नीचगति के पात्र होगे और जन्मांतर में धर्म पाप्ति दुर्लभ होगी।
।।इति।। २१. देवता जिनेश्वर की दाढा पूजते हैं :
एकवीस वें प्रश्नोत्तर में सूर्याभ देवता तथा विजय पोलिया प्रमुखों ने जिनदाढा पूजी है। उस का निषेध करने वास्ते जेठमल ने कितनीक कुयुक्तियां लिखी हैं । परंतु उनमें से बहुत कुयुक्तियों के प्रत्युत्तर वीसवें प्रश्नोत्तर में लिखे गये हैं । बाकी शेष कुयुक्तियों के उत्तर लिखते हैं । श्रीभगवतीसूत्र के दशवें शतक के पांचवें उद्देश में| कहा है कि - १ जो ढूंढिये "निस्सेसाए" शब्द का अर्थ मोक्ष के वास्ते ऐसा नहीं मानते है तो श्रीरायपसेणीसूत्र
में अरिहंत भगवंतको वंदना नमस्कार करने का फल सूर्याभने चिंतन किया वहां भी "निस्सेसाएं" शब्द है जो पाठ इसी प्रश्नोत्तर की आदि में लिखा हुआ है, और अन्य शास्त्रों मे भी है तो ढूंढियोंके माने मुताबिक तो अरिहंत भगवंत की वंदना नमस्कार का फल भी मोक्ष न होगा ! क्योंकि वहां भी "निस्सेसाएं फल लिखा है। इस वास्ते सिद्ध होता है कि जिनप्रतिमा के साथ ही ढूंढियों का द्वेष है और इस से अर्थ का अनर्थ करते है, परंतु यह इन का उद्यम अपने हाथों से अपना मुंह काला करने सरीखा है ।
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