SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० सम्यक्त्वशल्योद्धार २९. जेठमल जीत आचार ठहरा के देवता की करणी निकाल देता है परंतु अरे ढूंढिये! क्या देवता की करणी से पुण्यपाप का बंध नही होता है ? जो कहोगे होता है तो सूर्याभ ने पूर्वोक्त रीति से श्रीवीर प्रभु की भक्ति की उस से उस को पुण्य का बंध हुआ या पाप का ? जो कहोगे कि पुण्य या पाप किसी का भी बंध नहीं होता है तो जीव समयमात्र यावत् सात कर्म बांधे विना नहीं रहे ऐसे सूत्र में कहा है सो कैसे मिलाओगे ? परंतु समझने का तो इतना ही है, कि सूर्याभ तथा अन्य देवता जो पूर्वोक्त प्रकार जिनेश्वर भगवंत की भक्ति करते हैं सो महापुण्यराशि संपादन करते हैं क्योंकि तीर्थकर भगवंत की इस कार्य में आज्ञा है। ३०. जेठमल "पुव्विं पच्छा" का अर्थ इस लोक संबंधी ठहराता है और "पेच्चा शब्द का अर्थ परलोक ठहराता है । सो जेठमल की मूढ़ता है, क्योंकि पुव्विं पच्छा का अर्थ 'पूर्वजन्म' और 'अगला जन्म' ऐसा होता है; 'पेञ्चा' और 'पच्छा' पर्यायी शब्द है, इन दोनों का एक ही अर्थ है । जेठे ने खोटा अर्थ लिखा है । इस से निश्चय होता है कि जेठलम को शब्दार्थ की समझ ही नहीं थी ।। श्रीआचारांगसूत्र में कहा है कि "जस्स नत्थि पुव्विं पच्छा मज्झे तस्स कओसिया' अर्थात् जिसको पूर्वभव और पश्चात् अर्थात् अगले भव में कुछ नहीं है उसको मध्यमें भी कहां से होगा ? तात्पर्य जिस को पूर्व तथा पश्चात् है उस को मध्यमें भी अवश्य है । इस वास्ते सूर्याभ की जिनपूजा उस को त्रिकाल हितकारिणी है, ऐसे श्रीरायपसेणीसूत्र के पाठ का अर्थ होता है। और श्री उत्तराध्ययनसूत्र में मृगापुत्र के संबंध में कहा है कि अम्मत्ताय मए भोगा भुत्ता विसफलोवमा ।। पच्छा कडुअविवागा अणुबंध दुहावहा ।।१।। अर्थ - हे मातापिता ! मैंने विषफल की उपमा वाले भोग भोगे हैं, जो भोग कैसे हैं ? 'पच्छा' अर्थात् अगले जन्म में कडुवा है फल जिन का और परंपरा से दुःख के देने वाले ऐसे हैं । इस सूत्रपाठ में भी पच्छा' शब्द का अर्थ परभव ही होता है। किं बहुना। ३१. जेठमल सूर्याभ के पाठ में बताये जिन पूजा के फल की बाबत "निस्सेसाए" अर्थात् मोक्ष के वास्ते ऐसा शब्द है । उस शब्द का अर्थ फिराने वास्ते भगवतीसूत्र में से जलते घर से धन निकालने का तथा वरमी फोड़ के द्रव्य निकालने का अधिकार दिखाता है । और कहता है कि "इस संबंधमें भी"| (निस्सेसाए) ऐसा पद है । इस वास्ते जो इस पद का अर्थ 'मोक्षार्थे' ऐसा हो तो धन निकालने से मोक्ष कैसे हो ? उस का उत्तर-धन से सुपात्र में दान दे, जिनमंदिर, जिनप्रतिमा बनवावे, सातों क्षेत्रों में, तीर्थयात्रा में, दया में तथा दान में धन खरचे तो उससे यावत् मोक्षप्राप्त हो । इस वास्ते सूत्र में जहां जहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy