SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं भूलना चाहिए कि प्रथम तो ऐसा विहार कदाचित् और अपवाद स्वरूप ही होता है, प्रतिदिन नहीं। दूसरा रात से अभिपाय केवलमात्र एक रात्रि से नहीं है अपितु कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार एक रात्रि में दिन और रात दोनों का ग्रहण होता है। . इस प्रकार भगवान का चौथे पांचवें चातुर्मास में गुजरात की ओर जाना बुद्धिगम्य नहीं प्रतीत होता । इसके बाद भी १२ वें चातुर्मास के बाद भगवान का श्राबू की ओर जाना माना जाता है। यह कहा जाता है कि भगवान का छम्माणि ( षण्मानो) जाने का उल्लेख है, यही भगवान को कीलोपसर्ग हुआ था । षण्मानी का अपभ्रंश 'सानी' माना जाता है जो कि पहले श्राबूपर्वत पर था, परन्तु किसी कारणवश सानी से चरणपादुकाएं ब्राह्मणवाडा के पास ने पायी गयीः सानी से ब्राह्मणवाड़ा पहाड़ के रास्ते लगभग २० मील दूर है । पर विहारक्रम को देखने से ज्ञात हो जायेगा कि भगवान का १२ वें चौमासे के बाद भी बाबू की भोर जाना सम्भव नहीं है। क्योंकि विहार के जितने भी स्थान हैं वे सब पूर्व में हैं, छम्माणि के पूर्वापर स्थान भी पूर्व में हैं । छम्माणि स्वयं भी पूर्व में है इसे दीर्घनिकाय में 'खानुमत' नाम से स्मरण किया गया है और मगध में बताया मया है । साथ ही पहले की भांति विहार इतना लम्बा हो जाता है कि इतना दूर जाना शक्य नहीं प्रतीत होता। कुल मिला कर भगवान का पश्चिमी प्रदेश की ओर पांच बार जाना माना गया है:-(१) प्रथम चौमासे में (२) दूसरे चौमासे से पूर्व (३) तीसरे चौमासे से पूर्व (४) चौथे चौमासे के बाद और पांचवें से पूर्व (५) बारहवें चौमासे के बाद । इस सब का हमने ऊपर निराकरण कर दिया है कि गुजरात, मारवाड़, काठियावाड़ में भगवान का जाना बुद्धिराम्य तथा शास्त्रानुकूल नहीं है। स्वयं भगवान ने केवलज्ञान के बाद साधु के विहार के लिए जो सीमा निर्धारण किया है उस से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003205
Book TitleVeer Vihar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy