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गुजरात में मानना अनुपयुक्त है। २५॥ आर्यदेशों में लाढ भी एक है, श्री वीरप्रभु की छद्मस्थावस्था के समय अनार्य गिना जाता था। इसको राजधानी कोटिवर्ष थी। अाजकल बंगाल प्रान्त में दिनाजपुर जिले के अन्तर्गत बानगढ ही प्राचीन कोटिवर्ष है। इस लिये लाढ देश को गुजरात में मानना तथ्यों के विपरीत है ।
लाढ के अतिरिक्त एक देश लाट है जो कि गुजरात प्रदेश में है। लाट का प्राकृतरूप लाड है, सम्भवतः लाड और लाद को एक समझ कर उपर्युक्त गलती की गई है । इस लाड या लाट की राजधानी ईलापुर थी, कुछ समय तक भृगुकच्छ या भरुच भी राजधानी रही थी। लाद और लाट पर विस्तृत विवेचन हमारी 'प्राचीनभारतवर्षसमीक्षा' में किया गया है । इस प्रदेश में भगवान के श्राने का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
ऊपर दी गई मान्यताओं के अनुसार भगवान का यदि पृष्ठचम्पा ( यहां भगवान ने चौथा चातुर्मास किया था) से सीधा सिरोही की ओर जाना मान लें और सिरोही से पालीताना (सिद्धाचल) की
ओर जाना मान लें तो भगवान को आने जाने में २५०० मील से कम नहीं चलना पड़ा होगा । शास्त्रोंमें विहार के स्थान इस प्रकार निर्दिष्ट हैं:-पृष्ठचम्पा (चौथा चातुर्मास ), कयंगला, श्रावस्ती, इलिङ्ग, नंगला, आवत्ता, चोरायसन्निवेश, कलंबुकासन्निवेश, राढभूमि (लाढ) पूर्णकलश और भद्दिया । इन स्थान में से तो कोई स्थान गुजरात, मारवाड़ की ओर नहीं है, सब स्थान पूर्व की ओर है। यदि इन स्थानों के विहार को भो उपयुक्त विहार में और जोड़ दें तो २५०० मोल की अपेक्षा यह ३५०० मील से भी अधिक हो जायेगा । इतना लम्बा विहार समझ में नहीं आता । सम्भव है यह कहा जाय कि भगवान ने एक रात में १२ योजन का विहार किया था । परन्तु यह
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