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________________ (४) reminds one of the celebrated Hastigrama near Vaisali ( modern Besarb in the Muzaffarpur district,north Bihar ). ___यही हथिगाम सम्भवतः अस्थिकमाम है । बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित हथिगाम और जैनसाहित्य में वर्णित अस्थिकग्राम में थोड़ा सा उच्चारण-मेद है परन्तु दोनों साहित्यों में इसे विदेहदेश के अन्तर्गत तथा वैशालो के निकट होना बताया है। इसलिये 'विहारदर्शन के लेखक ने भी अपने ग्रन्थ में पृष्ठ २२८ पर वढवाण के आगे लिखा है, “नदी काठे कृत्रिमतीर्थ"-अर्थात् नदी के किनारे कृत्रिम तीर्थस्थान । वस्तुतः स्थिति भी ऐसी ही है । प्रथम वर्षावास के बाद दूसरे वर्षावास से पूर्व भगवान ने जिन स्थानों में विहार किया उनमें कनकखल आश्रमपद भी एक हैं। इसे आबूपर्वत पर स्थित कनखल बताया जाता है। यदि उपयुक्त धारणा स्वीकार कर ली जाय कि वर्तमान वढवाण ही अस्थिकाम है तो भगवान उस स्थान से मारवाड़ में श्राबूपर्वत स्थित कनखल आश्रम में आये होंगे। विहारक्रम में बताया गया है कि भगवान अस्थिकग्राम से मोराकसन्निवेश गये फिर क्रम से दक्षिणवाचाला, सुवर्णबालुका (नदी) और रुप्यबालुका (नदी) हो कर कनकखल आश्रम पहुंचे। वढवाण से आबपर्वत की ओर चलने पर इन नामों वाले न तो कोई स्थान ही मिलते हैं और नहीं कोई ऐसी नदी रास्ते में पड़ती है जिन की ओर निर्देश करना ग्रन्थकार को आवश्यक प्रतीत होता हो। इस आश्रम से चल कर भगवान उत्तरवाचाला पहुंचे, वहां से सेयं विया चले गये। बाबूपर्वत स्थित कनखल श्राश्रम से सेयंविया अथवा श्वेतम्बिका लगभग ७०० मील है । परन्तु श्रावश्यकचूर्णि पूर्वभाग पृष्ठ २७८ पर कहा गया है। 'तस्स य अदूरे सेयंविया नाम नगरी' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003205
Book TitleVeer Vihar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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