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________________ उत्तर " " २०-हमारे गुरूजी तो उपदेश देते हैं ? २१- सूत्र कोई मूर्ति थोड़ा ही है ? २२- क्या आप सूत्रों को भी मूर्ति मानते हो ? " २३- आकृति तो है ? " " २४-सूत्रों के पन्ने को तो आप मूर्ति मानते हो पर०, २५-वे कैसे मूर्ति पूजक हैं ? २६-यदि हम मूर्ति को कारण भी मानलें तो ? ,, २७-हाँ उपकार तो मानना ही चाहिए ? २८-हाँ पूज भाव तो आता ही है ? २९-श्राप संसार भर को मूर्तिपूजक बतलाते हो ?, २०८ ३०-मुशलमान लोग कैसे मूर्तिपूजक हैं ? , ३१-क्रिश्चियन लोग तो मूर्तिपूजक नहीं है ? , ३२-पारसी लोग तो मूर्ति का नाम ही नहीं लेते हैं , ३३ -- शिक्ख और कबीर पन्थी तो मूर्ति नहीं मा० , ३४-ौंका-स्थानकवासी-तेरहपन्थो मू० न० मा० ,, ३५- मूर्ति मानने वालों की संख्या कितनी है ? , ३६-क्या जैनसूत्रों में मूर्तिपूजा का विधान है ? , ३७-सूत्रों को आप मूर्ति कैसे कहते हो ? , ३८-मूर्ति को तो आप वन्दन पूजन करते हो ? , , ३९- हम लोग तो सत्रों को वन्दन पूजन नहीं करते हैं ? , ४०-महावीर तो एक ही तीर्थङ्कर हुए हैं आप० ? ,, ४१- कोई तीर्थङ्कर से तीर्थङ्कर नहीं मिलते हैं पर०, ४२-सूत्रों में तो तीन चौबीसी के नाम कहा है ? , ४३-सूत्रों के पढ़ने से ज्ञान होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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