________________
मुँहपत्ती बंधाने के कल्पित चित्र बनाये हैं उनके दो चित्र ज्यों के त्यों यहाँ प्रकाशित किये गए हैं, जैन सूत्रों में किसी भी साधु या भावकों को मुंह पर डोरे से मुंहपत्ती बांधने का विधान नहीं मिलता है, जो विधान मिलता है वह सिर्फ नाई की हजामत बनाते समय का मिलता है, उस नाई की प्रथा आज भी राजे रजवाड़ों में प्रचलित है, ऐसा ही एक चित्र इसमें दर्ज है जिसका अनुकरण करने वाले स्थानकमार्गी भाई उससे कुछ बोध पाठ ले सकते हैं। ____ आगे चल कर मुनि श्री ने (१) लौकाशाश के अनुयायी साधु (२) और उनके बाद वेश परिवर्तन करने वाले देशी साधु ( ३) परदेशी साधु (४) तेरहपन्थी साधु-उन चारों के चित्र देकर यह बतलाने का प्रयत्न किया है कि यह जो मुँह पर होरेवाली मुँहपत्ती महावीर के बांधी गई है वे महावीर किस समुदाय के हैं ? यदि छोटी मुँहपत्ती के कारण ये महावीर देशी साधुओं के हैं तो परदेशी और तेरहपन्थियों को अपनी आम्नाय के अनुसार दूसरे महावीर की कल्पना करनी चाहिये । साथ ही
आपने यह भी व्यक्त किया है कि श्वेताम्बर, दिगम्बर भौर लौकागच्छ के भगवान महावीर ने न तो मुंहपत्ती ली थी, न बाँधी थी, न बाँधने का उपदेश दिया था, फिर भी स्थानकमार्गी वीर्यवरों को भी उपयोग शून्य मान कर मुँहपत्ती बंधा देते हैं, यह दूसरी बात है। आगे चल कर लेखक महोदय ने नामा नरेश को अध्यक्षता में जो एक जैन मुनियों और स्थानकमागियों का शास्त्रार्थ हुआ था, उसके मध्यस्थ पांच पण्डित थे, जो कुछ भी उनको सत्य मालूम हुआ और उन्होंने फैसला दिया है वह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org