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(..५१ ) मौलिकता में असाधारण वृद्धि की है । फलतः यह प्रन्थ सभी सम्प्रदायों के लिये अनुपम साहित्य निश्चय सिद्ध होता है और मुझे पूर्ण श्राशा है कि सभी धर्मानुरागी सम्प्रदाएं इसे पढ़ कर लाभ उठायेंगी। : मूर्तिपूजा के विषय में जो भी कुयुक्तियाँ देकर भोली आत्माओं का पतन करने का प्रयत्न किया जाता है उनके हित को ध्यान में रखते हुये लेखक महोदय ने इसी प्रन्थ से सम्बन्ध रखने वाली “ मूर्ति पूजा विषयक प्रश्नोतर " और जोड़ने की कृपा की है जिससे इस विषय का खूब अच्छा प्रतिपादन हो गया है। खास कर प्रश्न और उत्तर के तौर पर लिखने से अबोध जीवों को इस कृति द्वारा बहुत ही लाभ होने की सम्भावना है। क्यों कि मूर्ति की निन्दा करने वाले व्यक्ति इस विषय में जितनी भी कुयुक्तियां पेश कर सकते हैं उन सबका मुँह तोड़ उत्तर देने वाले इस पुस्तक को पढ़ कर प्रत्येक सहृदय महानुभाव का हृदय गद्गद हुये बिना नहीं रह सकेगा, साथ ही स्था० पूउय० घासी लालजी द्वारा प्रकाशित "उगसगदशांगसूत्र पर भी अच्छा प्रकाश डाल कर इस ग्रन्थराज के महत्त्व को और अधिक प्रमोवान्वित करने का प्रयास किया है। : एक बात और विशेष विचार करने योग्य यह है कि वर्तमान समय में मूर्तिपूजा निषेध के साथ मुँहपत्ती में डोगडाल दिन भर मुँह पर बाँधने का भी जो आग्रह किया जाता है और उसी बात की पुष्टि के लिये मूर्ति नहीं मानने वाले स्थानकमागियों की तरफ से "तीर्थङ्कर सिर्फ देव दुष्य के ही धारक थे बाद में वस्त्र रहित थे, उन महावीर के मुंह पर डोरे वाली मुँहपत्ती बंधा देने
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