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________________ परिशिष्ट ४२६० धोखा ही दिया है । अथवा यह भी हो सकता है कि आज संशोधकयुग में कई स्थानकवासी भाई मुँह पर दिनभर मुँहपत्ती बाँधी रखना कल्पित समझ कर इस कुप्रथा का त्याग कर मूर्त्तिपूजक समाज में चलेगये, और जा रहे हैं। पर शेष भ्रमित चित वालों को आश्वासन देने के लिये ही यह व्यर्थ प्रयत्न किया गया हो । परन्तु यह सब स्वप्नवत् कल्पना ही है । ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से मैं इन सबका खुलासा यहाँ नहीं करता हूँ परन्तु मैं मेरे पाठकों को इतना ही कह देना पर्याप्त समझता हूँ कि इस विषय में विद्वान् मुनिश्रीमणिसागरजी महाराज ने " श्रागमानुसार मुखवखिका निर्णय" नामक वृहद् ग्रन्थ प्रकाशित करवाया है उसको मंगवा कर पढ़िये और वह प्रन्थ कोटे से मुफ्त मिलता है । प्रस्तुत ग्रन्थ पड़ने से अब्वल तो आपको स्थानकवासी समाज की सत्यता मालूम हो जायगी कि वे लोग एक मिथ्या बात को किस प्रकार सत्य करना चाहते हैं दूसरा यह भी ज्ञान हो जायगा कि न तो किसी जैनाचार्यों ने दिनभर मुँहपत्ती मुँहपर बाँधी थी और न इसका विधान ही किसी प्रन्थ में लिखा है । यह तो हमारा कमनसिव हैं कि विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में तीर्थङ्करों की और खासकर लौकागच्छ के प्राचायों को आज्ञा का भंग कर स्वामी लवजी ने हाथ में मुँहपत्तो रखने की कठिनाइयों को सहन न करते हुए उस श्रापत्ति को मिटाने के लिये ही डोराडाल दिन भर मुँहपत्ती को मुँहपर बांधकर स्वयं कुलिंग धारण कर अन्य धर्मियों से जैनधर्म की निंदा करावाई है और अन्ध परम्पर में विश्वास रखने वाले कई जानते व अनजानते भी इस कुप्रथा को झूठमूठ ही चला रहे हैं परन्तु समझदार लोग तो इस कुप्रथा को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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