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________________ ४२५ परिशिष्ट ( ६ ) थोड़ी देर के लिये रजोहरण से लिया हुआ काजा दिन रात्रि लेते ही रहना ? इत्यादि समय समय पर करने योग्य क्रियाओं को हमारे स्थानकवासी भाई दिन रात्रि तक वही क्रिया करना स्वीकार कर लेंगे ? यदि नहीं तो फिर यह उदाहरण आगे क्यों रखा जाता है कि मूर्तिपूजक आचार्य जिस समय ताड़ पत्रों पर सूत्र थे और व्याख्यान के समय मुँहपत्ती से मुँह श्राक्छादित किया करते थे, इसलिये हम भी दिन रात्रि डोराडाल मुँहपत्ती मुँह पर बाँधी रखते हैं । समझना इतना ही है कि अपवाद है वह श्राफत समय के लिये है प्रत्युत हमेशा के लिये नहीं । फिर भी हमारे स्थानकवासी भाई क्या यह बतलाने का थोड़ा ही साहस कर सकेंगे कि किसी जैनाचार्य या लोकागच्छ के आचार्य ने व्याख्यान के समय के अतिरिक्त मुँहपत्ती में डोरा तो क्या, पर मुँहपत्ती के कोने भी कानों के छिद्रों में डाल मुँह छादित कर व्याख्यान के पाटे के सिवाय एक कदम भी - गमनागमन किया था ? क्या आहार बिहार निहार के निमिक्त उपाश्रय के बाहार उसी अवस्था में एक कदम भी भरा था ? और इसी कारण किसी विधमियों ने उनकी निन्दा की थी ? जैसे डोरा डाल मुँहपत्ती मुँहपर बाँधने वालों की इस प्रवृत्ति के प्रारंभ से आज पर्यन्त हो रही हैं। तीसरा स्थानकवासी मित्रों ने अपनी पुस्तकों में जिन जिन आचायों के ग्रन्थों के नाम लेकर मुँहपत्ती मुँहपर बाँधना सिद्ध करने का मिथ्या प्रयत्न किया हैं वह भी केवल भद्रिक जनता को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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