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________________ परिशिष्ट ४२४ मुंहपत्तो मुंहपर बाँधने का कोई भी प्रमाण नहीं मिला तब वे इस अपवाद मार्ग को बिना समझे, इसी का नाम लेकर अपने भक्तों को बहका देते हैं कि देखो मूर्तिपूजक आचार्य भी लाभ समझ के थोड़ी देर के लिये मुँहपर मुंहपत्ती बाँधते थे और उसमें फायदा समझते थे । दिन भर बाँधने में तो अधिक फायदा है तो इसमें शंका ही क्यों करना चाहिये इत्यादि ? इस पूर्वोक्त कुयुक्ति से तो उन भाइयों की अनभिज्ञता ही जाहिर होती है क्योंकि उन्होंने अबी उत्सर्गोपबाद को समझा तक भी नहीं है । यदि कारणवसातू अपवाद रूप थोड़े समय के लिये जो कार्य किया गया हो पर कारण के अभाव उस अपबाद रूप कार्य को सदैव के लिये करना और उसमें अधिक फायदा सममना या भद्रिकों को समझाना इसके सिवाय अनभिज्ञता ही क्या हो सकती हैं ? यदि ऐसा ही हो तो बतलाइये-- (१) थोड़ी देर के लिये किया हुए विहारकों दिन रात्रि करते ही रहना ? (२) थोड़ी देर के लिये किया हुश्रा आहार पानी दिन रात्रि में करते ही रहना ? (३) थोड़ी देर के लिये ली हुई दवाइ दिन रात्रि लेते ही रहना ? (४) थोड़ी देर के लिये की हुई प्रतिलेखन दिन रात्रि करते ही रहना ? (५) थोड़ी देर के लिये दिया हुश्रा व्याख्यान दिन रात्रि देते . ही रहना ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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