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________________ नाभा नरेश का फैसला ४१६ देवगुरू के प्रताप से यहां सुख शान्ति है, और आप की हमेशा चाहते हैं । समाचार यह है कि श्राप के पंडितों का भेजा हुआ फैसला पहुँचा, पढ कर दिल को बहुत आनन्द हुआ, न्यायी और धर्मात्मा महाराजों का यही धर्म है, कि सत्य और झूठ का निर्णय करें जैसा कि आपने किया है, कितने ही समय से बहुत लोगों के उदास हुए दिल को आप ने खुश कर दिया, इस बारे में आप को बार बार धन्यवाद है। अब इस फैसले के छपवाने का इरादा है, सो रियासत नाभा में छपवाया जावे या और जगह भी छपवाया जा सकता है । आशा है कि इसका जवाब बहुत जल्द मिले । ता० १८-१-१९०६, द. वल्लभविजय, बैन साधु । पूर्वोक्त पत्र के उत्तर में नाभा नरेश ने पण्डितों के नाम पत्र लिखा, उसकी नकल नीचे मुजब है: ब्रह्ममूर्त पण्डित साहिबान कमेटी सलामतनम्बर ११९३. , इन्दुल गुजारिश पेशगाह खास से इरशाद सायर पाया कि बाबा जी को इत्तला दी जावे कि जहां उनकी मनशा हो वहां इसको तबध करावें, यह उन को अखतियार है, जो कुछ पंडतान ने बतलाया वह भेजा गया है, लिहाजा मुतकलिफ खिदमत हूँ कि आप बमनशा हुक्म तामील फर्मावें, १० माघ संवत् १९६२ अज सरिशतह ड्योढी पन्नालाल, सरिशतहदार । ... इस पत्र के उत्तर में कमेटी पंडितान ने श्रीमुनि वल्लभविजयजी के नाम पत्र लिखा, उसकी नकल यह है-"ब्रह्म स्वरूप बाबा साहिबजी श्रीमहात्मावल्लभविजयजी साहिब साधु सलामत.नं ७७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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